Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 46
________________ ना. ॥४॥ ___ भावार्थ-सिंहल द्वीपमा सिंहे त्यांना राजानी महेरवानी मेळवी. पछी अन्य वस्तुओनी खरीदीथी लाभ न थाय || तेवू होवाथी हाथीदांत ग्रहण करवानी इच्छाथी पोते घोर अरण्यमा गयो । १११ ॥ - स तत्र दन्तिवधकै-दन्तवृन्दान्यथाऽऽनयत् ।. पापद्रव्येण यत् पापे-वेव बुद्धिः प्रजायते ॥ ११२ ॥ भावार्थ-ते जंगलमा हायीना वध करनार माणसो द्वारा हाथीदांत मंगावीने खरीद कर्या. खरेखर शास्त्रमा च. कारोए सत्यज वचन का छे के-'पापथी संचय करेल धनधी पापकारी अधम कृत्यो करवानीज बुद्धि उत्पन्न थाय || छे.' आपणामां एक लौकिक सादी कहेणी छे के-'जेवो आार तेवो ओडकार.' माटे सुज्ञ जनोए नीतियुक्त धन उपार्जन करवामांज प्रयत्नशील बनवू जोइए. श्रावकने प्रथम मोक्षमार्ग तरफ दोरवनार मार्गानुसारीना पांत्रीश गुणो पैकी 'न्यायथी द्रव्य मेळवq ' ए प्रथम गुण छे, अने ए गुण मेळवा माटे दरेक मनुष्ये पोताना विचार मक्कम करवा जोइए के " मारा जीवननो मुखपूर्वक निर्वाह करवा माटे नीतिमार्गथी द्रव्य मेळवीश." आ जीवनसूत्र दोके पोताना हृदयपट्ट उपर सवर्णाक्षरे कोतरी राखवं जरुरनं छे ॥ ११२॥ भृत्वा चत्वारि यानानि, दन्तैर्वारिधिवर्त्मना। मुक्तवा कुटुम्वं तत्रैव, सुराष्ट्रां प्रति सोऽचलत् ॥ ११३॥

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