Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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भावार्थ-भिन्न भिन्न देशना राजाओ अभिमानी अने पराक्रमी होवा छता पण, पूर्वे कदापि नहीं अनुभवेलो || वैरनो बदलो सांभळी तेना पुण्य प्रतापथी कंपायमान थता पोतानी मेळेज नमवा लाग्या ॥ १०५ ।। राज्ये न्यस्य सुतं ज्येष्ठं, लक्ष्मी कृत्वाथ पुण्यसात् ।
ना. समुद्रपालो वैराग्याद्, व्रतमादत्तं सद्गुरोः ॥ १०६ ॥ भावार्थ-पवित्रात्मा ते समुद्रपाल राजाए नीतपूर्वक घणां वर्ष राज्य कर्यु. छेक्टे पोताने वैराग्य थवाथी मोटा पुत्रने राज्य उपर स्थापन कर्यो, अने पुण्यार्थे सारी कार्योमां लक्ष्मीनो व्यय करी सद्गुरु पासे दीक्षा ग्रहण || १४| करी ॥ १०६॥
अथैकविंशतिघस्रान्, साधिताऽनशनः शमी।
जज्ञे सर्वार्थसिद्धाख्ये, विमानेऽनुत्तरे सुरः ॥१०७॥ भावार्थ-वैराग्यमा मग्न बनेला ते समुद्रपाल महामुनि शांतिपूर्वक एकवीश दिवस अणसण करी सर्वार्थसिद्ध नामना देवलोकने विषे अनुत्तर विमानमा देवपणे उत्पन्न यया ॥ १०७ ॥
- ततश्च्युत्वा कुलं शुद्धं, लब्ध्वा संयमराज्यतः।
आसाद्य केवलं ज्ञानं, मोक्षसौख्यमवाप सः ॥ १०८ ॥

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