Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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भावार्थ- पोताना लघु बांधव सिंहे जो के पोतानुं अनिष्ट करेलुं धतुं छतां 'कोई पण रीते तेनुं श्रेय थाय तो सा' एप विचारी तेनुं कल्याण क्रस्वानी बुद्धिधी सज्जन स्वभावी समुद्रपाले एक दिवस तामलिप्ती नगरीमा तेने बोलावा माटे पोताना विश्वासु माणसने मोकल्यो । १०२ ।।
ना.
सतत्र गत्वाऽऽगत्याथ, प्रोचे सिंहोऽस्ति तत्र न । प्रपलाय्य गतः क्वापी-त्यापि शुद्धिः पुरे न तु ॥ १०३ ॥
च.
भावार्थ - ते माणस तामलिप्ती नगरीमा जइने पाछो आव्यो, अने कछु के- ' सिंह तामलिप्ती नगरीमां ||३९| 'नथी, अने नासीने क्यां गयो छे तेनी पण तपास करवा छतां शोध मळी शकी नथी ' ॥ १०३ ॥
न्यायेन पालयन् राज्यं, प्रत्यदं स्वकुटुम्बयुक् ।
यात्रा अनेकशः कुर्वे - चिरं सौख्यममुङ्क्त सः ॥ १०४ ॥
भावार्थ- समुद्रपाल नीतिथी पोताना राज्यनुं पालन करवा लाग्यो, अने प्रत्येक वर्षे शत्रुंजयादि तीर्थोनी
अनेक यात्राओ करतो छतो घणो काळ सुख भोगचवा लाग्यो ॥ १०४ ॥
अभूतपूर्व श्रुत्वा तद्वैरनिर्यातनं नृपाः ।
कम्पमानाः साभिमाना, अप्यस्मै नेमिरे स्वयम् ॥ १०५ ॥

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