Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 41
________________ ____भावार्थ-वळी धनिकपुरुषतुं दान करातुं धन तो ओर्छ थाय छे, पण दान करातुं सुकृत तो धनिकने || वृद्धिज पामे छे-सुकृतनुं जेम जेम दान करीए तेम तेम घटवाने बदले ते वधतुं ज जाय छे ॥ ९६ ॥ श्राव्यते सुकृतं यावद्, योऽन्तकालेऽपि तावतः। निजश्रद्धानुमानेन, स तदैवाऽश्नुते फलम् ॥ ९७ ॥ . . भावार्थ-जे माणसने अंत वखते पण जेटलुं सुकृत संभळावाय छे ते. मनुष्य पोतानी श्रद्धाना अनुमाने करीने वेटला मुकृतना फळने तेज वखते प्राप्त करे छे ॥ ९७॥ ततः श्रावयिता पश्चाद्, विधत्ते मानितं यदि। तदा सोऽप्यनृणः पुण्य-भाग भवेदन्यथा न तु ॥ ९८ ॥ ' भावार्थ-त्यार पछी सुकृत संभळावनार जो मानेलं मुकृत पाछळथी करे तो ते माणस पोताना देवामाथी छूटे छे, अने पोते पण पुण्यनो भागी बने छे, पण जो न करे तो तेथी विपरीत फळ पामे छे ॥ ९८ ॥ अश्रावितोऽपि अद्धत्ते, सुकृतं यः क्वचिद्गती। जानन ज्ञानादिभावेन, सोऽपि तत्पलमाप्नुयात् ॥ ९९ ॥

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