Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 39
________________ च. नजीकना पाडोशमा रहेती एक घरडी डोशीना मुखद्वारा कोमल स्वरथी कहेवाता श्रीशत्रुजय तीर्यना अद्भुत माहात्म्यने एकाग्रचित्ते सांभळतो छतो मृत्यु पाम्यो, अने श्रीशर्बुजयना ध्यानथी आज पर्वतने विषे व्यंतर देव ययो कुं. ॥ ८९ ९०॥ .. . तत्र पूजाक्षणे स्वीयं, नाम श्रुत्वा भवन्मुखात्। स्मृत्वा च पूर्ववृत्तान्तं, प्रतिचेता व्यचिन्तयम् ॥ ९१ ॥ भावार्थ-आ पर्वतने विषे पूजा समये तमारा मुखथी मारुं नाम सांभळीने पूर्वभवनो हत्चान्त स्मरण करी मारं चित्त घणुं प्रसन्न पयुं, अने में विचार्यु के-॥ ९१.॥ साध्विदं विदधे देव-द्रव्यं यद्देवपूजने । व्ययितं तत् किमप्यस्य, सान्निध्यं विधेऽधुना ॥९॥ भावार्थ-आ राजाए देवपूनामां देवद्वन्यनो व्यय कर्यो ते घणुन सारं कर्य, माटे एने हवे कारक सहायकारी थाउं॥९२।। अतः सहागतेनैव, यन्त्रितास्ते मयाऽरयः। अल्पशक्तिः परं नाऽह--मन्यत्र स्थातुमीश्वरः ॥९३ ॥

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