Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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भावार्थ - त्यांथी व्यवीने पूर्व भवमां प्राप्त करेला श्रेष्ठ चारित्ररूप राज्यना बलथी उत्तम कुळ पामीनें केवलज्ञान प्राप्त करी मोक्षे गया ।। १०८ ॥
इतश्च तामलिप्त्यां स, सिंहः श्रुत्वा स्वबान्धवम् ।
राज्ञा विसृष्टं सत्कृत्य, यात्रार्थ सत्यभाषणात् ॥ १०९ ॥ निजाऽऽगःशङ्कया सर्व-मादाय सपरिच्छदः ।
जगाम सिंहलद्वीप, पोतमारुह्य तत्क्षणात् ॥ ११० ॥ युग्मम् ।
भावार्थ - हने तामलिप्ती नगरीमां समुद्रपालनो नानो भाइ जे सिंह हतो तेणे पोताना मोटा भाइने कष्टमां नास्वा माटे राजाने भंभेर्यो हतो, पण समुद्रपाले सत्य हकीकत जाहेर करवार्थी छेवढे सत्यनो विजय थयो, अने तेथी समुद्रपालनो दंड करवाने बदले तेनो उलटो सत्कार करी राजाए शत्रुंजयनी यात्रा माटे विसर्जन कर्यो. आ प्रमाणे बनेली हकीकत सांभळी पोते राजानो गुन्हेगार बनवानी शंकाथी सिंह परिवार सहित पोतानुं सर्व लइने तेज क्षणे वहाण उपर चडी समुद्र मार्गे सिंहलद्वीप गयो । १०९-११० ॥
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राजप्रसादं तत्राप्य, दन्तिदन्तजिघृक्षया । घोरे स्वयमरण्येगा - दलाभादन्यवस्तुनः ॥ १११ ॥
ना.
च.
||४१॥

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