Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ मा. च. |३२| ते प्रोचुर्नाऽपरं विद्मो, विशेषं किन्तु सङ्गरे । अबध्यामहि दुर्बुद्धी, युध्यमानाः स्वयं वयम् ॥ ८१ ॥ भावार्थ-त्यारे सर्व राजाओए प्रत्युत्तर आप्यो के — अमे आम बनवानुं बीजुं तो कांइ विशेष कारण जाणता नथी, परंतु दुष्टबुद्धिथी युद्ध करता अग्रे रणांगणमा स्वयमेव बंधाई गया छीए ॥ ८१ ॥ परं भवत्प्रसादेन, च्छुटिता नात्र संशयः । अतः स्वस्सेवकान् यावज्जीवं स्वीकुरु नोऽधुना ॥ ८२ ॥ भावार्थ- परंतु हे राजन् ! आपनीज कॅपाद्रष्टिथी अमे छुच्या छीए, एमां संशय नथी. माटे हवे आप अमो सर्वने जीवंत पर्यंत पोताना सवकपणे स्वीकारो ॥ ८२ ॥ इत्युक्त्वा सेवकीभूतैस्तैरेव । ऽसौ परिवृतः । स्वपुरं प्राविशत् प्राज्य-: - प्रवेशोत्सव पूर्वकम् ॥ ८३ ॥ भावार्थ -- आवी रीते सेवक तरीके पोताने वश थयेल सर्व राजाओथी परिवरेल ते समुद्रपाल राजाए मोटा उत्सवयुक्त पोताना नगरमां प्रवेश कर्यो ।। ८३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108