Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ ना. च. १७ आ भावार्थ - प्रमाणे श्रीशत्रुंजय तीर्थनी यात्रा निमित्ते जोडावेळा चारे मुहूर्ती निष्फळ जवाथी, 'अरे ! मारो आत्मा महापापी छे के जेथी पवित्रतीर्थ श्री शत्रुंजयनी यात्रा करवा जतां आवी रीते विघ्नो आव्या ज करे छे' एप्रमाणे पोताना आत्मानी निंदा करता थका राजाए पांच मुहूर्त कढाव्युं. पण कर्मसंयोगे ते मुहूर्तं पण पोताना देश उपर बीजा राजाओना सैम्यो चडी आववाना भयथी बीती गयुं. ॥ ३६ ॥ एवं भूपो व्यतिक्रान्ते, यात्राया लग्नपञ्चके । हेतुमस्य कथं ज्ञास्या - मीति चिन्तातुरोऽभवत् ॥ ३७ ॥ भावार्थ- --आ प्रमाने श्रीशत्रुंजय तीर्थनी यात्रा करवा माटे ज्योतिषीओ पासे कढावेळा पांचे मुहूर्तो व्यतीत outet 'आवी रीते विघ्नो आववानुं कारण हुं केबी रीते जाणीस १" ए प्रमाणे राजा चिंतातुर थयो. ॥ ३७ ॥ तावतोयानमायाताः, श्रीयुगन्धरसूरयः । इति विज्ञपयास, भूपालं वनपालकः ॥ ३८ ॥ भावार्थ - एक विचार करे छे, तेटलामां बनपालके आवी राजाने वधामणी आपी के उद्यानवां श्रीयुगंधर सूरि समबसर्वा 'छे. ॥ ३८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108