Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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ना.
च.
|२०|
भावार्थ – ओगणीश कोटाकोडी सागरोपम काल पहेला, अतीतचम्बीशीयां जम्बूद्वीपना भरत क्षेत्रने विषे 'संप्रतिस्वामी नामना तीर्थकरना वारामों, समुद्रतट समीपे तामलिप्ती नगरीमां समुद्र अने सिंह नामना वे भाइ रहेता हता. तेओमां मोटो भाइ समुद्र निर्मल चरित्रवाळो पुण्यवान् अने सरलहृदयी हतो, पण नानो भाइ दुष्ट आचरणवाळो महापापी अने क्रूरहृदयी हतो. जेम बोरडीना कांटाओ पैकी कोइ वक्र अने कोइ सीधो होय छे, तेष आ बने भाइओमा मोटो भाइ सरळ इतो, अने नानो भाइ वक्र हतो. ॥ ४३-४४-४५ ॥
भुवं खनद्द्भ्यां ताभ्यां स्व-गृहे स्थूणार्थमन्यदा ।
चतुर्विंशतिदीनार - सहस्रनिधिराज्यत ॥ ४६ ॥
भावार्थ-ते बनेर एक दिवस पोताना घरनी अंदर थांबलो नाखवा माटे पृथ्वी खोदतां चोवीस हजार सोनामहोरी भरेको निधि प्राप्त कर्यो. ॥ ४६ ॥
देवद्रव्यमिदं नाग- गोष्ठिकेन निधीकृतम् ।
इत्युक्तिगर्भ पत्रं च, ज्येष्ठो दृष्ट्वेत्यभाषत ॥ ४७ ॥
भावार्थ- - तथा तेनी साथे एक पत्र नीकळ्यो. तेमां एवा भावार्यनुं लख्युं हतुं के – 'आ देवद्रव्य नाग१ अतीत चोवीशांमां चोवीशमा तीर्थंकर ।

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