Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

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Page 23
________________ राजन् ! सुखेषु दुःखेषु, मुख्यं कर्मैव कारणम् । तच्चार्जितं त्वया पूर्व, यथा मूलात् तथा शृणु ॥ ४२ ॥ भावार्थ-हे राजन् ! मुख अने दुःख ए चने प्रसंगोमा दरेक प्राणीने मुख्य कारण कर्मज छे. अने ते. कर्म पूर्वभवपां तें जे उपार्जन कर्यु छे ते बीना तुं अथथी इति पर्यंत सांभळ. ॥ ४२ ॥ ना. ।१९। नाभाकराजाना पूर्वभवर्नु वृत्तान्त. एकोनविंशत्यम्भोधि.कोटाकोटिप्रमाणतः। कालात् परमतीतायां, चतुःसंयुतविंशतो ।। ४३ ॥ जम्बुद्वीपस्य भरते, सम्प्रतिस्वामिवारके। उपाम्भोधि तामलिप्ती-नगर्या भ्रातरावुभौ ॥४४॥ समुद्-सिंहौ ज्येष्ठस्तु, निर्मलः पुण्यवानृजुः । विपर्यस्तः कनिष्ठश्च, बदरीकण्टकाविव ॥ ५५ ॥ . त्रिभिर्विशेषकम् ॥

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