Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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नापना कुटुंबीए निधि तरीके दाटयु छे.' आ प्रमाणे लखेलो पत्र वांचीने ज्येष्ठ भ्राता समुद्रे पोतानो अभिपाय जाहेर || कर्यो के-॥४७॥
गत्वा शत्रुञ्जये नाग-श्रेयसे दीयते ह्यदः । ना.
श्रुत्वेति जायया नुन्नः, कनीयानित्यवोचत ॥ ४८ ॥ . भावार्थ-शत्रुजयमा जइने नागगोष्टिकना पुण्यने माटे आ नीकळेळ देवद्रव्य आपीए'। ए प्रमाणे मोग २४ भाइर्नु वचन सांभळी पोतानी स्वीपी प्रेरायेलो नानो भाइ सिंह बोल्यो के-॥४८॥
कन्या वराहीं जाताऽसौ, परं नोवाहिता पुरा।।
धनं विनाऽथ तत्प्राप्तौ, सोत्सवेन विवाह्यते ॥ ४९ ॥ भावार्थ- 'आ कन्या वरने योग्य थइ के, परंतु अत्यार सुधी धन बिना तेनुं लग्न कर्यु नथी, पण हवे धननी प्राप्ति यवाथी तेनो महोत्सवपूर्वक विवाह करीए' ॥४९॥ .
ध्यौ समुद्रः श्रुत्वेति, स्वभावाद् दुष्टधीरसौ ।
भार्यया प्रेरितो जातो, वात्येरितकृशानुवत् ॥५०॥ || भावार्थ-भाई नाना भाइर्नु अयोग्य कथन सांभळी समुद्रे विचार कर्यो के-आ स्वभायथीन दुष्ट घुदियालो ||

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