Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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वधूसहस्रैरपि सैप खेलन,
भवाप सर्वाङ्गमनोहरत्वम् ॥१०॥ भावार्थ-पुरातन समयमां, कामदेव घे खीओ साये खेलतो छतो पण अनंगपणाने पाम्यो हतो, परंतु आ || नाभाक नाभाकराजा तो हजारो स्त्रीभोनी साथे क्रीडा करतो छतो पण सर्वांगे मनोहरपणाने पाम्यो हतो । कामदेव रति अने प्रीति नामनी वे ज स्त्रीओ'साथे क्रीडा करवा छतां अनंगपणाने एटले अंगरहितपणाने पाम्यो हतो, पण आ || चरित्र राजा तो हजारो स्त्रीभोनी साथे खेलतो हतो छतां पण सर्षोंगे मनोहरपणाने पाम्यो हतो ॥१०॥
तमन्यदा मुदासीनं, सभायामेत्य भूपतिम् ।
. सत्प्राभृतं पुरस्कृत्य, श्रेष्ठी कश्चिन्नमोऽकरोत् ॥११॥ भावार्थ-एक दिवसे ते राना पोतानी सभामा हर्षित चित्ते बेठो हतो, ते अवसरे कोइक श्रेष्ठीए आवीने राजानी सन्मुख सुंदर भेटणुं मूकी नमस्कार कर्यो ॥ ११ ॥
___ कस्त्वं कुतः समायातः, कुत्र यासीति भूभृता ।
पृष्टे स्पष्टमयाचष्ट, श्रेष्ठी राजनिशम्यताम् ॥ १२ ॥ भावार्थ-त्यारे राजाए ते शेठने पूछयु के, तमे कोण छो ? क्यांची आव्या छो ? अने क्यां जाओ छो?।।
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