Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri,
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand
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चरित्रः
सबल्लभाऽभूदु मरुदेवी तस्याः;
कुक्षौ जिनः श्रीवृषभोऽवतीर्णः ॥ १५ ॥ भावार्थ-पहेला आ भरतक्षेत्रमा इक्ष्वाकुभूमिने विषे श्रीनाभि नामनां कुलकर यया, तेमने मरुदेवी नामनी ना
नाभाक श्रेष्ठ पत्नी हती. तेमनी कुतिमा श्रीऋषभदेव जिनेन्द्रनो जन्म थयो ।॥ १५ ॥
असंख्यवर्षाणि न धर्मकर्माऽभिज्ञो जनोऽभूत् समयानुभावात् ।
॥८॥ प्रकाश्य तन्मार्गयुगं तदवा
ऽवतीर्य सोऽनीतिपथं लुलोप ॥ १६ ॥ भावार्थ-कालना प्रभावयी असंख्यवर्षोयी जनसमुदाय धर्म अने कृषि-वाणिज्यादि कर्मथी अजाण हतो. ते सर्वेने प्रभुए आ भरतक्षेत्रमा अवतरीने धार्मिक अनुष्ठान तथा कृषि-वाणिज्य विगैरे व्यवहारिक क्रियाओ बतावी. आ प्रमाणे धर्म अने कर्म ए पन्ने प्रकारना माग समजावी अनीति मार्गनो तद्दन लोप कर्योः ॥ १६ ॥
'आदौ स पाणिग्रहणं विधाय, शतं सुतानां च विभज्य राज्यम् ।

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