Book Title: Nabhakraj Charitram
Author(s): Merutungsuri, 
Publisher: Dosabhai and Karamchand Lalchand

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ १४|| इदमेवोक्तमन्यग्रन्थेष्वपिपश्चाशदादौ किल मूलभूमे-दशोर्वभूमेरपि विस्तरोऽस्य । उच्चत्वमष्टैव तु योजनानि, मानं वदन्तीह जिनेश्वराद्रेः॥२८॥ भावार्थ-पवित्रतीर्थ श्रीशचुंजयना परिमाण विषयमा अन्यग्रन्थोने विषे पण आ प्रमाणे उल्लेख छ श्रीऋषभदेव प्रभुना निवासालय आ गिरिनो आदिनाथ प्रभुनी वखते मूलभूमिनो विस्तार पचास योजन, ऊर्ध्वभूमिनो विस्तार दस योजन, अने आ गिरिनी उंचाइ आठ योजन हती. भागवते- दृष्ट्वा शत्रुक्षयं तीर्थ, स्पृष्ट्वा रैवतकाचलम् । स्नात्वा गज़पदे कुण्डे, पुनर्जन्म न विद्यते ॥२९॥ भावार्थ-भागवतमा पण कयु छ के-जे मनुष्य श्रीशत्रुजयगिरिनुं दर्शन करे छे, गिरनार पर्वतनो स्पर्श करे • छे, अने गज़पद कुंडमां स्नान करे छे तेने फरीथी जन्म लेवो पडतो नथी ॥ २९ ॥ नागपुराणे- अष्टषष्टिषु तीर्थेषु, यात्रया यत् फलं भवेत्। श्रीशत्रुजयर्थेिश-दर्शनादपि तत्फलम् ॥ ३० ॥ भावार्थ-नागपुराणमां को छे के-अडसठ तीर्थोने विषे यात्रा करवायी जे फळ प्राप्त थाय, तेटलं फळ ।। -

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108