________________
है। मुझे आपकी हानि के बदले इससे कुछ धन-राशि दिलाई जाये।"
न्यायाधीश ने कहा, "तुम कितनी धन-राशि चाहते हो?" वादी- "श्रीमान् ! बीस हजार रूपये।"
न्यायाधीश ने कहा, "अच्छा, पूरी धन-राशि स्वीकृत की जाती है।" तीसरा मुकदमा
वादी ने कहा - "श्रीमान् ! मिल की मशीन की खराबी से मेरा हाथ कट गया है। मुझे इस हानि के बदले धन-राशि प्राप्त होनी चाहिये। न्यायाधीश ने कहा, "तुम क्या चाहते हो?" वादी ने कहा, “श्रीमान् ! तीस हजार रूपये।"
न्यायाधीश ने कहा, "अच्छा, उतनी धन-राशि स्वीकृत की जाती है।"
देखी यह दुनिया? जहाँ पत्नी, प्रतिष्ठा और हाथ सब कुछ धन की तराजू पर ही तोला जाता है।
धन होगा तो सुखी हो सकेंगे, सुरक्षित जीवन यापन कर सकेंगे, सुख पूर्ण जीवन जी सकेंगे.... "सर्वे गुणा: कांचनमाश्रयन्ते' 'समस्त गुण आकर धन का ही आश्रय लेते हैं।'
इस भयंकर भ्रम के जाल में से जब तक हम बाहर नहीं निकल सकते, तब तक हम नीति की वास्तविक महिमा नहीं समझ सकेंगे।
कुछ भी करो, परन्तु धन लाओ, फिर चाहे उस धन की प्राप्ति के लिये निकृष्टतम मार्ग ही क्यों ही अपनाना पड़े। इस प्रकार की कलुषित मान्यता के चक्कर में चढकर वर्तमान मानव बर्बाद हो रहा है।
'समस्त संसार जहन्नुम' में जाये, परन्तु मेरी तिजोरी भरनी ही चाहिये।' आज समाज में इस प्रकार का विचार व्याप्त होता जा रहा है। धन की लालसा से कैसे क्रूर पाप
धन-प्राप्ति के लिये आज मनुष्य जो मार्ग अपना रहे हैं उनके विषय में सुन कर हमें कंपकंपी छूटती है.... * देवनार के वाधिक गृह में नित्य छ: छः हजार पशु काटे जाते हैं। * अपनी लालसाओं को सन्तुष्ट करने के लिये भेडों के छोटे छोटे मेमनों के केवल 48 घंटों में चीर कर उनके रुंआटों से बूट आदि बनाये जाते हैं। * कोमल पट्टे और पर्स बनाने के लिये साँपों को मारकर उनकी केंचुली उतार कर लाखों रूपये अर्जित करने के लिये प्रति वर्ष दो-ढाई करोड़ साँपों को मौत के मुँह में डाल कर किसी का भी हृदय काँपता
RecGES 26 98909090