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(नवाँ गुण) माता-पिता की पूजा मात-तात अरू गुरुजनों का, परिपूजक हो जाऊँ।
मातापित्रोश्च पूजक:। (माता-पिता की पूजा)
माता-पिता के अपरम्पार उपकारों को सदा दृष्टिगत रखकर सदा विनय पूर्वक उनका सम्मान करने वाला, उनकी पूजा तथा सेवा करने वाला व्यक्ति 'कृतज्ञ' कहलाता है। आत्मा में धर्म का प्रारम्भ होता है - माता-पिता की पूजा से। माता-पिता का उपकार आकाश के समान असीम है। उनके उपकारों का विचार किये बिना जो व्यक्ति उनकी पूजा तथा भक्ति नहीं करता, उल्टी उनकी अवहेलना करता है, उनका तिरस्कार करता है, वह चाहे जितना धार्मिक हो तो भी उसका कोई मूल्य नहीं है।
जिस व्यक्ति में प्रारम्भिक धार्मिक के ही लक्षण नहीं हैं, वह बाह्य दृष्टि से यदि उच्च कोटि के विरति आदि धर्मों का पालक हो तो भी नींव विहीन सत्ताईस मंजिल के भवन के समान उसके उन धर्मों का मूल्य क्या ? उसकी आयु कितनी हैं ? कुणाल की पितृ भक्ति वाले इस देश की संस्कृति को जब भारत की सन्तान भूलने लग गई है तो 'माता
पिता की पूजा' नामक इस गुण की बात अत्यन्त पुष्टता से करने की अब अत्यन्त आवश्यकता होती है। मार्गानुसारी आत्मा का नवाँ गुण है - मातापिता की पूजा।
EMIERE to Sesssasar