Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 154
________________ NROERGERSO909090 सात व्यसन जिन्हें देश के समस्त धर्मों ने, समस्त शास्त्रों ने एकमत होकर व्यसन माना हैं और जिनसे जीवन का भयकंर विनिपात होता है, जिनसे जीवन की शान्ति-मृत्यु समय की समय की समाधी, परलोक में सद्गति और परम्परा से प्राप्त होने वाली मुक्ति ये समस्त असंभव हो जाते हैं वे सात महा व्यसन निम्नलिखित है :1) मदिरा, 2) माँस, 3) शिकार, 4) जुआ, 5) परस्त्रीगमन, 6) वेश्यागमन और 8) चोरी। 1. मदिरा :- मानव-जीवन की समस्त बर्बादी की सर्जक मदिरा है। एक बार जो इसकी लत में पड़ गया वह पड़ा ही समझें। उसका विनिपात कहाँ जाकर रूकेगा उसका कोई भरोसा नहीं है। मदिरा - पान से अन्य समस्त व्यसन जीवन में प्रविष्ट हो जाने की पूर्ण संभावना है क्योंकि इसके पान से विवेक-बुद्धि नष्ट हो जाती है और अविवेकी व्यक्ति समस्त पाप कर सकता है। शराबी व्यक्ति को मदिरा-पान करने के लिए और दुराचार करने के लिये पैसों की सख्त आवश्यकता होती है जिससे वह चोरी भी करता है और जुआ भभ खेलता है। और मदिरा-मांस आदि के भक्षक मन में हिंसा होनने से उसमें शिकार का पाप भी प्रवष्टि हुए बिना नहीं रहता। इस प्रकार मदिरा का व्यवसन अत्यन्त भयंकर है। उसका परित्याग परलोक में सदगति प्राप्त करने के लिये तो ठीक, परन्तु इस लोक से सुख-शांति और प्रसन्नता के लिये भी अत्यन्त आवश्यक है। वालकेश्वर की एक महिला की व्यथा वालकेश्वर की उस महिला की कथा स्मरण हो आई है जिसकी व्यथा सुनकर एक मुनिवर की आँखों में आँसू आ गय थे। उस महिला ने रोते - रोते कहा, "महाराज साहेब। क्या करूँ ? घर में अपार धन है, तीन गाडियाँ हैं, नौकर-चाकर है, सन्तान भी समझदार है, परन्तु उनमें (पति में) एक भारी दषण है - मदिरा-पान का, जिसने हमारे संसार को आग लगा दी है। वे रात्रि में विलम्ब से आते हैं मदिरा के नशे में चूर होकर, उन्हें तनिक भी भान नहीं होता, वे बुरी-बुरी गालियां देते हैं। बालक छोटे हैं, कभी-कभी शोर-गुल से जाग भी जाते हैं। उनके समक्ष ही वे मुझे पीटते हैं, बच्चों को भी अत्यन्त पीटते हैं। इस सब से घर का वातावरण कुलषित होता है और बालकों पर विपरीत संस्कार पड़ते हैं। अब महाराज साहेब। मैं क्या करूं ? कुछ समझ में नहीं आता। घर में लाखों रूपये होने पर भी इस मदिरा के दैत्य ने हमारा जीवन नष्ट कर दिया है।" मदिरा से पत्नी की मृत्यु - ऐसे ही एक अन्य व्यथापूर्ण कथा है एक जैन महिला की। उसका फ्लैट भी वालकेश्वर के वैभवपूर्ण क्षेत्र में था। उसका पति मदिरा का पूर्ण व्यसनी था। वह महिला बार-बार पति को समझती - मदिरा का त्याग कर दीजिये, अन्यथा इससे अपने परिवार का सर्वनाश हो जायेगा।" परन्तु वह भाई नहीं मानता था और उल्टा पत्नी के साथ अत्यन्त मार-पीट करता था। एक बार बड़ी चतुर्दशी

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