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शिकार (जीव-हिंसा) और मांसाहार भाई-भाई हैं। जो व्यक्ति मांसाहार का शौकीन होगा उसे जीव-हिंसा करने में हिचहिचाहट नहीं होगी। अन्य व्यक्ति भी जो जीव-हिंसा के पाप करते होंगे उन्हें वे बुरे नहीं मानेंगे। इसलिये शिकार एवं मांसाहार दोनों त्याज्य हैं। प्राचीनकाल में जैन आगेवानों और जैन संघ की गांवों में अत्यन्त सत्ता रहती थी। जैन-नगर सेठों और संघ की मर्यादा भंग करके अजैन जातियों के निम्न वर्ग के मनुष्य भी खले आम हिंसा आदि पापों को कर नहीं सकते थे। उन्हें जैन समाज (संघ) का भय लगता था।"यदि गांव का जैन समाज क्रोधित हो गया तो-इस प्रकार का उन्हें भय रहता। जैन संघ की सत्ता :- सौराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में एक वावरी ने खुल आम एक तीतर का शिकार किया और जैन संघ की सत्ता को मानो चुनौती देने के लिये ही उसने उस तीतर को मार्ग के चौक में रस्सी बाँधकर टाँग दिया। गाँव का जैन संघ एकत्रित हुआ और विचार किया "यदि इस वाघरी को उसके पाप का दण्ड नहीं दिया गया तो एक बार आन टूटने पर अनेक लोग हिंसा आदि पाप स्वच्छन्दता से करने लगेंगे।
जैन संघ ने निर्णय किया कि "जब तक वाघरी क्षमा याचना नही करें तब तक समस्त जैन दूकान बन्द रखें। व्यापारियों की दूकानें बंद हो गई। वाघरी आदि निर्धन जाति के लोग नित्य अनाज, किराना एवं नमक-मिर्च खरीदकर जीवन निर्वाह करते थे। अत: व्यापारियों की दूकानें बंद होने से सबको अत्यन्त कष्ट होने लगा।
फिर भी उस वाघरी ने जैन संघ से क्षमा-याचना नहीं की। वाघरी जाति ने भी उसका साथ देना प्रारम्भ किया। उन्होंने सोचा कि बनिये कब तक दूकानें बंद रखेंगे ? अन्त में तो तंग आकर दुकानें खोलेंगे ही। परन्तु इस ओर जैन संघ अडिंग रहा। दकानें नहीं खोली तो नहीं ही खोली। ऐसा करते-करते उन्नीस दिन व्यतीत हो गये।
अब वाघरी तंग हो गये,"कब तक ऐसे चलायेंगे?" इनका भी बाल-बच्चों का परिवार था। अत: वह वाघरी अन्त में क्षमा याना करने के लिये तत्पर हुआ और उसने क्षमा याचना करते हुए कहा "भविष्य में इस प्रकार हिंसा नहीं करूंगा।"
तत्पश्चात् जैन संघ ने दूकानें खोली। इसके कारण सम्पूर्ण गांव में जैन संघ की ऐसी धाक जम गई कि कोई भी व्यक्ति कभी इस प्रकार प्राणियों की हत्या करने का साहस नहीं कर सकता था।जो बड़े माने-जाने वालों में हिंसा त्याग कर सकते हैं। जो बड़े (महाजन) ही हिंसा आदि करतें हो तो निम्न वर्ग के मनुष्यों से हिंसा त्याग करने की अपेक्षा ही कैसे कर सकते हैं ? 4. जुआ :- जूए का व्यसन भी इस लोक और परलोक दोनों के लिये हानिकारक हैं। जूआ प्रारम्भ में अत्यन्त मधुर लगता है, परन्तु इसका परिणाम भयंकर है, दारूण है। जीवन का सर्वनाश करने वाले जूए के फन्दे में कदापि नहीं पड़ना चाहिये।