Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 172
________________ eceses 333 1 995050005 धर्म आराधना आज से... एक समय भी प्रमाद किये बिना धर्मसाधना कर लेने की प्रभु की बात अनेक बार में सुनी है लेकिन गंभीरता से मन से उसका अमलीकरण करने की तलप दिल में जैसे उठनी चाहिए वैसे उठती नहीं कोई समाधान ? समय और कर्म इन दोनों के स्वभाव को आंखों के समक्ष रखना चालू कर दो। धर्म आराधना तीव्रता से और शीघ्रता से होकर रहेगी। समय का स्वभाव ख्याल में है। प्रत्येक समय पसार होता है, मृत्यु आपके करीब आता है। आश्चर्य की बात तो यही है कोई भी बोल बेस्टमेन के लिए कयामत का बोल बन सकता है। उसी तरक कोई भी समय हमारी भी मृत्यु हो सकती है। गाड़ी की चाबी हाथ में और हृदय की धड़कने बंद हो सकती है। रात को सोते है लेकिन सुबह देखेंगे कि नहीं यह निश्चित नहीं। किसी की बारात में गये हो वहाँ से सीधे श्मशान पहुँच सकते है। एक और समय भरोसादायक नहीं तो दूसरी और कर्म भी विचित्र है। आपकी पेढी डूब सकती है तो जबान पर पेरेलिसीस का आक्रमण आ सकता है। सग्गा बेटा बाप का खून कर सकता है तो प्रिय बेटी किसी के साथ भाग सकती है। 'समय' कोई भी पल में जीवन समाप्त... ऐसा भय स्थान अपने सिर पर हो और 'कर्म' कोई भी समय हाथ में रहे इस जीवन को मृत्यु से भी बदत्तर बना देने की शक्यता अपने पास हो तब धर्म आराधना को मुलत्वी रखने की या विलंबित करने की चेष्टा अपनी मूर्खता नहीं तो और क्या है ? मूर्ख नहीं है यह साबित करने हेतु भी आज से धर्म आराधना प्रारंभ कर दीजिए । मनुष्य जीवन, पंचेन्द्रिय पदुता, स्वस्थमन, धर्म सामग्री, प्रभु का शासन, प्रभु के वचन इन सभी की प्राप्ति 'दुर्लभ' है ऐसा सूना है लेकिन हमको तो यह सभी जन्म से मिल गया है। इनका सउपयोग कर लेने के लिए अत:करण में इतना उत्साह क्यों नहीं आता ? कारण ? झोपडपट्टी में रहता 75 साल के कोई बुजुर्ग को अपने जीवन काल दरम्यान पांच लाख की अंगूठी देखने को मिले लेकिन बही अंगूठी कोई धनवान के पांच साल के लड़के को पहनने के लिए मिल जाय यह बन सकता है। चोकलेट की लालच दिखाकर कोई उसकी अंगूठी निकलवाने में सफल बन जाता है कारण उस बच्चे को पांच लाख की अंगूठी का मूल्य मालूम नहीं है। बस वैसा ही अपना बना है। अपने आंखों के सामने दिखाइ रहे पशु-पंछी-कीडे देखने पर अपने को मनुष्य जीवन की दुर्लभता का ख्याल आता है। आती है। अंधे - मूंगे-बहेरे मानवों को देखने के बाद पंचेन्द्रिय पटुता का ख्याल आता है। पागल और मानसिक विकलांग आदमीओं को देखने पर स्वस्थ मन की किमत समझ में betete 167 0000000000

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