Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 163
________________ कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरि महाराजा बताते हैं कि - व्ययमायोचितं कुर्वन् वेषं वित्तानुसारतः। "गृहस्थ को अपनी आय के अनुसार व्यय करना चाहिये और वेष-भूषा भी धन-सम्पत्ति के अनुसार धारण करनी चाहिये।" व्यय किसे कहते हैं ? अपने आश्रितों, स्वजनों तथा सेवकों आदि का पालन-पोषण करना, अपने लिये वस्तुओं का उपभोग करना, देव-पूजा एवं अतिथि सत्कार आदि के लिये धन व्यय करना, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन व्यय करना - इसे व्यय कहतें हैं और वह व्यय अपनी नौकरी, व्यपार आदि के द्वारा प्राप्त होते धन में से उचित रीति से करने का नाम उचित व्यय। धन साध्य नहीं है, साधन है - वर्तमान समय में मानव जीवन में धन ग्याहरवां प्राण हो गया है। यह बात सही है कि धन जीवन-निर्वाह के लिये अनिवार्य है, परन्तु यह बात सतत ध्यान में रहे कि धन साधन है, साध्य नहीं है। धन जीवन व्यवहार का माध्यम है ध्येय नहीं है, जीवन की यह मंजिल नहीं है। "धन में ही जीना और धन के लिये ही जीना' यह सच्चे सज्जन का लक्षण नहीं हैं, क्योंकि यदि जीवन धन के लिये ही जीना प्रारम्भ हो जायेगा तो उस धन को प्राप्त करने के लिये अनेक पाप करने में भी मन नहीं हिचकिचायेगा। 'धन है तो सब कुछ है। धन से ही संसार में मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। कहते भी हैं न कि, सर्वेगुणा: कांचन-माश्रयन्ते' - इस प्रकार की मान्यता गाढ़ मिथ्यात्वी व्यक्ति की होती है, सच्चे सज्जन की नहीं। ज्ञानी पुरूष तो यहाँ तक कहते हैं कि ईमानदारी और नीति से उपार्जित धन को भी आप उचित मार्ग में ही व्यय करें। नीति से उपार्जित धन को भभ चाहे जिस प्रकार से और चाहे जिस काम में व्यय नहीं किा जा सकता। इस कारण ही तो 'मार्गानुसारिता के गुणों में 'न्यायसम्पन्न विभव' को जिस प्रकार स्थान दिया गया है उसी प्रकार से आयोचित न्याय' नामक गुण को भी अत्यन्त महत्वपूर्ण मानकर स्थान दिया गया है। यदि ऐसा नहीं होता तो 'उचित व्यय को स्वतंत्र गुण बताकर उसे 'पैतीस गुणों' में महत्व नहीं दिया गया होता। उचित अर्थात् योग्य एवं आवश्यक : जीवन-व्यवहार में आप जब-जब और जोजो व्यय करो तब-तब आप मन ही मन अपने अन्तर को पूछते रहें कि यह जो मैं व्यय कर रहा हूँ वह क्या सचमुच उचित हैं ? उचित के दो अर्थ होते हैं (1) योग्य एवं (2) आवश्यक। जिस कार्य के लिये आप व्यय करते हैं क्या वह योग्य हैं ? और क्या वह आवश्यक हैं ? इन दोनों प्रश्नों का उत्तर मन ही मन प्राप्त करें। प्रश्न : योग्य हो तो भी वह आवश्यक न भी हो, यह हो सकता है ?

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