Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 167
________________ 300 1 500000000 उन्होंने आगे कहा 'परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से हम अनेक व्यक्तियों के उपकार से दबे हुए हैं। इस प्रकार अनेक व्यक्तियों के ऋण में हम डूबे हुए हों तो हम व्यर्थ व्यय कैसे कर सकते हैं ? हमारी आय पर केवल हमारा ही अधिकार नहीं है। हमारे परिवार, स्वजन, सम्बन्धी, स्नेही जनों, समाज, धर्म, धर्म-गुरूओं एवं सम्पूर्ण मानव-जाति के कल्याण के लिये इस सम्पत्ति का विनियोग होना चाहिये, तो ही हम उस ऋण से अमुकअंशो में उऋण हो सकते हैं। हमारी धन-सम्पति से हमारा और हमारे परिवार का निर्वाह हो उतनी धनराशि व्यय करके शेष धन का अन्य जीवों को बाह्य एवं अभ्यन्तर विकास के लिये सदुपयोग होना चाहिये।" उस सज्जन ने कितने विचार व्यक्त किये। बात करने में दो लालटेनों की क्या आवश्यकता ? एक अन्य मितव्ययी सज्जन की बात स्मरण हो आई है। वे एक बाद दो लालटेन जलाकर कुछ लिख रहे थे। उस समय कुछ कार्यकर्ता जीवदया का चन्दा लेने के लिये उनके पास आये। उस समय उन सज्जन ने एक लालटेन बुझा दिया। आगन्तुक कार्यकर्त्ताओं ने सोचा "ऐसा कृपण व्यक्ति चन्दे में क्या धन-राशि देगा ?" परन्तु उन्होंने अनुमान से अधिक धन राशि चन्दे में दी। उनमें से एक कार्यकर्त्ता ने विनम्रता से उन्हें पूछा "हम आये तब आप दो लालटेनों के प्रकाश में लिख रहे थे और फिर आपने एक लालटेन बुझा दिया। ऐसी कृपणता देखकर हमें उस समय यह प्रतीत हो रहा था कि आप चन्दे में क्या दे सकेगे, परन्तु जब आपने हमारे अनुमान से अधिक धन राशि दी तब हमारे भ्रान्ति दूर हो गई । " - तब वे सज्जन बोले - “भाई। लिखने के लिये दो लालटेन आवश्यक थे परन्तु वार्तालाप करते समय एक ही लालटेन पयोप्त था। मेरा नियम यह है कि व्यर्थ के व्यय से यथा शक्ति दूर रहना चाहिये, परन्तु आप जीवदया के जिस उत्तम कार्य के लिये आये हैं उसमें तो उचित धन राशि लिखवाना मेरा कर्त्तव्य था जिसे मैंने पूरा किया।" व्यर्थ के व्यय कुबेर का भण्डार भी खालीकर देते हैं : उचित व्यय का अर्थ यह है - हमारी व्यक्तिगत आवश्यकता के समय व्यय करते समय मितव्ययी होना। यथा संभव कम व्यय से काम चलाना, परन्तु जब स्वधर्मी अथवा सुपात्र मुनि तथा जीवदया आदि के लिये व्यय की आवश्यकता हो उस समय मितव्ययी न होकर सम्यक् प्रकार से उदारता पूर्वक व्यय करना चाहिये। एक बात अच्छी तरह समक्ष ले कि जीवन-निर्वाह के लिये तो अत्यन्त कम पैसों से चल सकता है, परन्तु यदि आप जीवन का श्रृंगार करना चाहोगे तो अपार सम्पत्ति भी आपको अल्प प्रतीत होगी। अपने अहंकार के पोषण के लिये, समाज में प्रतिष्ठा एवं सम्मान बना रखने के लिये, मैं भी किसी से कम नहीं हूँ, इस मिथ्या-भिमान के पोषण के लिये किये जाने वाले व्यय कुबेर के भण्डार को भी खाली कर सकते हैं। अन्य व्यक्तियों से अच्छे कहलवाने अथवा दिखाई देने की मनोवृत्ति में खिंचकर धन को उड़ाना निरी मूर्खता है। यदि मनुष्य चाहे तो कितने अल्प व्यय में जीवन-निर्वाह कर 162900000000

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