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उनके परिवार में विवाह का यह अन्तिम प्रसंग था। उससे पूर्व उसके दो भाईयों एवं एक इकलौती बहन के विवाह अत्यन्त धूमधाम से हो चुके थे। इस कारण उस गृहस्थ की इच्छा थी कि स्वयं का विवाह सादगी में किया जाये। उसने अपने माता-पिता एवं ससुराल वालों को समझाया, परन्तु माता-पिता ने कहा "पुत्र। अपने परिवार में विवाह का अब यह अन्तिम प्रसंग है। निकट भविष्य में अपने परिवार में विवाह का कोई प्रसंग आने वाला नहीं है। अत: यह विवाह तो ठाठ से ही करना है।"
ससुराल पक्ष में कन्या के विवाह का प्रथम प्रसंग ही था। अत: उनकी इच्छा भी विवाह धूमधाम से करने की थी। उस व्यक्ति ने दोनों पक्ष के लोगों को अत्यन्त समझाया कि 'वे व्यर्थ के व्यय है अत: सादगी से विवाह करो तो ठीक रहेगा।" परन्तु कोई नहीं माना। परिवार के बड़े-बढों की निरर्थक हठ पूर्ण करने के लिये उस सज्जन ने कहीं से बीस हजार रूपयों का ऋण लिया। वर्षों व्यतीत होने पर भी वह ऋण चुका नहीं सका। आज स्थिति यह हो गई है कि जिस व्यक्ति से उसने बीस हजार रूपयों का ऋण लिया था, उन्हें वह अपना मुँह तक बता नहीं सकता।
ये परिस्थिति क्यों उत्पन्न हुई ? उन्होंने अपनी शक्ति का तनिक भी विचार नहीं किया। अपना पुत्र भविष्य में इतनी बड़ी धन-राशि कैसे चुका सकेगा। उस विषय में तनिक भी विचार किये बिना माता-पिता व्यर्थ की हठ लेकर बैठ गये। मनुष्य को अपने स्तर और योग्यता का सदा विचार करके ही प्रत्येक कदम उठाना चाहिये। आप अकेले ही सामान क्रय करने के लिये क्यों आतेहैं ?
कई बार स्त्रियां अपने पति की आय का विचार किये बिना अपव्यय करती रहती हैं और अनावश्यक, केवल मौज-शौक की वस्तुएं क्रय करके पति को निरर्थक कठिनाई में डालती रहती हैं। स्त्रियों को भी अनावश्यक व्यय में कटौती करनी चाहिये। एक सज्जन कभी भी अपनी पत्नी को साथ लेकर 'शॉपिंग सेन्टर" में समान क्रय करने के लिये नहीं जाते थे। किसी मित्र ने उन्हें पूछआप अकेले ही सामान क्रय करने के लिये क्यों आतें हैं ? कभी कभी भाभी को साथ लेकर आते हो तो?"
उस सज्जन ने कहा ''भाई । यदि तुम्हारी भाभी को साथ लेकर सामान क्रय करने के लिये आऊँ तो सामान घर ले जाने के लिये एक बड़ा ट्रक भी साथ लाना पड़ेगा।"
अनेक धनी व्यक्ति बूट और चप्पलों की दस-पन्द्रह जोड़ियां रखते हैं। कार्यालय में पहनने के बूट अलग, पार्टी में पहनने के अलग, धार्मिक उत्सवों आदि में पहनने के अलग। एक व्यक्ति के पहनने के लिये कितनी जोड़ी बूट-चप्पल चाहिये ? यह सब अनुचित व्यय ही है न ? व्यर्थ की कुटेवों का त्याग करें - एक प्रसंग :
एक व्यक्ति अनेक बार मेरे पास आकर शिकायत करता- "श्रीमान्। अत्यन्त महंगाई है। इस संसार में तो तीन ठीक करों तो तेरह टूटते हैं ऐसी हमारी दशा है।'' वह नित्य उपाश्रय में आता और नित्य अपना रोना रोता। उस भाई के सिगरेट पीने की आदत के सम्बन्ध में मुझे ज्ञात हुआ। एक
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