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मार्गानुसारी आत्मा का नवाँ गुण है - माता-पिता की पूजा। हम पर अपरिमित उपकार है माता और पिता का। उनका उपकार सतत स्मरण रख कर, उनके प्रति अत्यन्त विनीत भाव से जो उनकी पूजा एवं भक्ति करता है वह माता-पिता का पूजक है, सच्चे अर्थ में 'कृतज्ञ' है। आदि-धार्मिक कौन ?
जैन शास्त्रों का कथन है - जीव का आदि धार्मिक लक्षण क्या है ? आदि-धार्मिक अर्थात् प्रारम्भिक धार्मिक व्यक्ति। आदि-धार्मिक व्यक्ति किसे कहा जाये ? उत्तर है - जो माता-पिता का पूजक है वह आदि-धार्मिक कहलाता है। अतः स्पष्ट है कि माता-पिता की सेवा एवं पूजा से ही धर्म का प्रारम्भ होता है। जिस माता-पिता की पूजा को शास्त्र इतना महत्व प्रदान करते हैं उसे यदि हमने अपने जीवन में से निकाल दिया तो समझ लेना कि हमारा जीवन अकारथ चला गया। हम चाहे जितनी धर्म-क्रिया करते हों परन्तु हमारी उस धर्म-क्रिया की नींव ही नहीं है। अत: नींव विहीन धर्म का भव्य भवन भी एक दिन ध्वस्त हो जायेगा, गिरकर चकनाचूर हो जायेगा।
माता-पिता की पूजा होती है, उन पर दया नहीं
यह सतत ध्यान में रखना चाहिये कि माता-पिता द्वारा किये गये उपकारों की स्मृति के रूप में उनकी सेवा और पूजा करनी है, उन पर दया अथवा करूणा नहीं करनी हैं, क्योंकि जिन पर आप दया करते हैं जिनके प्रति करूणा प्रदर्शित करते हैं उनका हाथ सदा नीचे रहता है और दया एवं करूणा के कर्ता के रूप में आपका हाथ सदा उपर रहता है। अत: दया-कर्ता की अपेक्षा उसे स्वीकार करने वाला व्यक्ति सदा नीचा समझा जाता है, जबकि माता-पिता किसी भी स्थिति में हो, वे सामान्य निर्धन स्थिति में रहे हों और आप भारी धंधा-व्यवसाय करके आगे आ गये हो, कदाचित करोड़पति भी होगये हों, तो भी आपके पिता सदा आपके लिये पूजनीय ही माने जायेंगे क्योंकि पिता के कारण ही तो आज आपका अस्तित्व है। दुःखदायी स्थिति में भी आपके पिता और माता ने आपको पाल-पोष कर बड़ा किया, तब सुखदायी स्थिति में आप उनको सम्हालो-सेवा करो उसमें आप तनिक भी उन पर उपकार नहीं करते, बल्कि यदि आप ऐसा करते हैं तो आप अपराधी हैं।
क्या माता-पिता देव तथा गुरू की अपेक्षा भी महान् हैं ?
प्रश्न - श्री जिनेश्वर भगवान एवं सद्गुरूओं का हम पर महान् उपकार है, फिर भी 'आदि-धार्मिक' के रूप में लक्षण बताते हुए माता-पिता का वहपूजक' होता है यह क्यों कहा? क्या माता-पिता जिनेश्वर भगवान अथवा सद्गुणों से भी महान् हैं ?
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