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मानी गई है और उपर्युक्त स्थानों पर जान-बूझकर रहना आत्म-घात को निमंत्रण देने तुल्य है। सुज्ञ पुरुषों को ऐसा कदापि नहीं करना चाहिये।
उपर्युक्त स्थानों पर रहने से जिस प्रकार मृत्यु अथवा धन नष्ट होने आदि का भय है। चोरडाकू आदि वाले अथवा दंगे-तोड़फोड़ आदि वाले स्थानों पर रहनेसे हमारे जीवन पर भी चोरों जैसे कुसंस्कारों का प्रभाव पड़ता है, सन्तानों में भी कुसंस्कार उत्पन्न होते हैं। जहाँ दंगे-उपद्रव निरन्तर चलते हों वहां हमारी भी चित्त-शान्ति नहीं रहती और चित्त-शान्ति के बिना धर्म - क्रिया कैसे सूझ सकती है ? निरन्तर क्रोध आदि कषायों को भड़काता है। यह अत्यन्त भारी हानि है। इस प्रकार यदि विषय एवं कषायों से जीवन नष्ट हो जाये तो चित्त की शान्ति कैसे कायम रह सकती है ? धर्माराधना कैसे की जा सकती है ?जीवन में सुख और परलोक में सद्गति आदि कैसे प्राप्त हो सकती है ? फिर तो मोक्ष - सुख भी दूर होते रहें तो उसमें आश्चर्य ही क्या है ? इस प्रकार उपद्रव-ग्रस्त स्थान में रहने से अपार हानि होने की सम्भावना है।
जहाँ स्वधर्मियों एवं सद्गुरूओं का संग प्राप्त न हो उस स्थान पर भी कैसे रहा जा सकता है ? सत्संग ही तो जीवन में परिवर्तन लाने के लिये महानतम आधार है। जहाँ सज्जनों अथवा सद्गुरुओं का संग उपलब्ध नहीं हो उस स्थान पर निवास करने वालों के लिये धर्म के प्रति प्रेम अथवा धर्माचार ही प्राय: सम्भावना नहीं होती।
विदेशों में वर्षों से बसे हुए अनेक महानुभावों के सन्तान जिनके जन्म विदेशों में ही हुए हैं उन्हें साध कौन होते हैं, क्या होते है यह भी पता नहीं है। उन्हें अण्डे-मांस आदि का भक्षण करने में कोई आपत्ति नहीं है। उनके प्रश्नों के उत्तर देने वाले कोई नहीं मिलते। परिणाम-स्वरूप शनैः शनै: वे अण्डे- माँस आदि के उपभोक्ता हो जाते हैं। यदि उनके माता-पिताओं का भय होता है तो वे गुप्त रीति से उन वस्तुओं के भक्षक बनते हैं और उनके सन्तान होने पर (तीसरी पीढी में) घर में ही सब लोग स्वतंत्रता पूर्वक मांसाहार आदि करने लग जायेंगे। ऐसे व्यक्तियों से धर्म के कौनसे अन्य संस्कारों की अपेक्षा की जा सकती है।
इस सब भक्ष्याभक्ष्य सेवन का मूल उपद्रवग्रस्त स्थान अथवा सद्गुरु आदि के संग से रहित स्थान में निवास करना ही है। इस कारण उन स्थानों का परित्याग करना अत्यन्त आवश्यक है। जहाँ हमारी चित्त-समाधि सुरक्षित रहती हो, धर्म की भावनाओं में वृद्धि होती हो, कषायों का निग्रह एवं शुभ आत्म-ध्यान आदि हो सकता हो उस स्थान पर अथव उस देश में बसने का आग्रह रखना हितकर है।
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