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मार्गानुसारिता के गुणों में ग्याहरवाँ गुण है -
निन्द्य प्रवृतियों का परित्याग
निन्द्य अर्थात् निन्दनीय, निन्दनीय अर्थात् निन्दा की पात्र लोगों में जो निन्दा की पात्र मानी जायें उन प्रवृत्तियों का परित्याग करना। पहले छठा गुण 'निन्दा का त्याग' बताया गया था। निन्दा प्राय: वचन सम्बन्धी अशुभ आचार है। अत: निन्दा का त्याग करने से वचन सम्बन्धी अशुभ आचार का त्याग होता है। जबकि वचन एवं देह से सम्बन्धित अशुभ आचार का त्याग 'निन्द्य प्रवृत्ति का त्याग' नामक इस ग्याहरवें गुण के सेवनसे होता है। अत: यह गुण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। निन्द्य किसकी अपेक्षा से ?
प्रश्न यह होता है कि निन्दा का पात्र किसकी अपेक्षा से माना जाता है ? यों तो समाज में ऐसे धर्माचार भी हैं जिन्हें कुछ लोग निन्दनीय मानते हैं। जैसे कोई वैष्णव अथवा जैन धर्म का चुस्त अनुयायी व्यक्ति ललाट में बड़ा पीला तिलक करके जाता हो तो कुछ आधुनिक लोग उसकी हंसी उड़ाते हैं। तो क्या तिलक करना निन्द्य प्रवृत्ति मानी जाती है ? इस प्रकार से सिर पर पगड़ी पहनना अथवा धोती पहनना वर्तमान लोगों को हास्यस्पद प्रतीत होता है। ( इस कारण ही सिर पर पगड़ी बाँधना अथवा धोती पहनना प्राय: बन्द हो गया है।) तो क्या उसे निन्द्य प्रवृत्ति मानें ?
इसके विपरीत आज कुछ आचार सर्वमान्य से हो गये हैं। तो क्या वे बुरे हों तो भी उन्हें अनिन्द्य मानें ? जैसे सिनेमा देखना, ताश खेलना, ताश पर जुआ खेलना, आय कर आदि की चोरी करना, परिस्त्रियों के साथ अमुक प्रकार के क्लबों में नृत्य करना आदि अत्यन्त व्यापक हो गाये है, तो क्या उन्हें निन्द्य नहीं मानें ?
शिष्ट व्यक्तियों को अमान्य वह निन्द्य -
समाज में शिष्ट माने जाते हैं उनके आचरण के अनुसार व्यवहार करना अनिन्द्य और उनसे विपरीत व्यवहार करना निन्द्य है। शिष्ट मनुष्य अर्थात् सज्जन, सदाचारी, धर्म की नीति एवं नियमों के ज्ञाता और यथा संभव के आराधक पुरुष कहें वह मानना, उनके आचारों को अनिन्द्य मानना ही बुद्धिमान मनुष्यों का कर्तव्य है । शास्त्र भी वाद-विवाद से निष्कर्ष नहीं निकलने पर 'शिष्ट कहें वह प्रणाम' कहकर शिष्ट जनों के वचनों को अत्यन्त प्रामाणिक बताते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अपेक्षा से शास्त्रों की अपेक्षा भी अमुक-अमुक विषयों के अनुभवी व्यक्तियों, शिष्ट व्यक्तियों का आचरण अधिक सम्मानीय माना गया है। इस कारण ही कहा गया है न कि "महाजनो येन गतः स पन्थाः” जिस मार्ग से महाजन (शिष्ट जन) गये हों, वही मार्ग कहलाता है।
शिष्ट व्यक्ति समस्त कालों में, समस्त समाजों में होते ही हैं। केवल हमें अपनी विवेक दृष्टि से उन्हें खोज निकालने की आवश्यकता है। यदि हमारी वृत्ति निन्द्य प्रवृत्तियों को जीवन में से निकालने में प्रबल होगी तो हमें सुयोग्य व्यक्ति (शिष्ट जन) मिल ही जायेंगे । अतः शिष्ट व्यक्तियों को
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