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दो युवकों ने केन्सर से पीड़ित अपनी माता को उसे रोग-मुक्त करने के लिये उसकी ही साड़ी का फन्दा बनाकर उसके गले में डाल कर उसको मार दिया था। हे भारत की सन्तान | कैसी तेरी अधम मनोदशा। विश्व के माता-पिता की पूजा करने के उपदेशक संत जिस भूमि में उत्पन्न हुए, उसी भूमि पर माता को मौत के घाट उतारने वाले नर-राक्षस पुत्र भी उत्पन्न होते हैं - यह कितनी दुःखदायी बाता है।
पिता को निकालने वाला दुष्ट पुत्र
माता-पिता के उपकारों की धज्जियों उड़ाने वाले एक अन्य पुत्र की बात स्मरण हो आई है। काली-मजदूरी करके पिता ने कुछ पैसे एकत्रित किये और पुत्र होशियार होकर धन उपार्जित करके वृद्धावस्था में अन्तड़ियों को शीतल करेगा इस आशा से उसने उसे विदेश भेजा। विदेश में अध्ययन करते - करते वह किसी सुन्दरी अंग्रेज कन्या के प्रेम में फंस गया, उसने वहीं उसके साथ विवाह कर लिया और वहीं जम गया।
प्रारम्भ में तो पुत्र के पत्र आते रहे, परन्तु कुछ समय पश्चात् पत्र आने बन्द हो गये, जिससे माता के हृदय में चिन्ता हुई कि पुत्र सकुशल तो होगा न ? प्रतिपल पुत्र के मंगल की चिन्ता करने वाली माता ने अपने आभूषण बेचकर विदेश जाने के किराये के रूपये देकर पति को पुत्र का पता लगाने के लिये विदेश भेजा।
अनेक कठिनाइयों से वहाँ पहुँचने के पश्चात् जब अपने प्राङ्गण में पुत्र ने पिता को देखा तो उसके मन में विचार आया "यह काला-कलूटा मेरा पिता है-यह बात जबमेरी अंग्रज पत्नी को ज्ञात होगी तो उसे कितनी घणा होगी ?" अत: उसने द्वार में प्रविष्ट होते पिता को धक्का मारकर तिरस्कृत करके वहाँ से निकाल दिया। बिचारा पिता इस आघात से आहत हो गया। कैसा नीच, क्रूर एवं अधम पुत्र। ऐसे पापी पुत्रों का बोझ यह पृथ्वी कैसे उठाती होगी, यह एक प्रश्न है। परन्तु स्मरण रखना, कि ऐसे पापी मनुष्य जीवन में कदापि सुखी और प्रसन्न नहीं हो सकते। उनके जीवन में ऐसी कोई दुर्घटना हो जाती है जो उनके जीवन के समस्त स्वप्नों एवं आशाओं को चूर-चूर कर देती हैं।
प्रभु महावीर का उत्तम दृष्टांत -
माता और पिता की भक्ति का सर्वोत्तम दृष्टांत है भगवान महावीर का। उसी जन्म में जो तीर्थंकर होने वाले हैं, त्रिलोक-नाथ होने वाले हैं, जिन्हें गर्भ में ही मति, श्रुत एवं अवधि ज्ञान होता है, और जिनके च्यवन, जन्म तथा दीक्षा आदि कल्याणकों को देवराज इन्द्र एवं देवतागण अनन्य भक्ति-भाव से मनाते हैं उन तीर्थंकर भगवंतो की आत्मा भी अपने गृहस्थ जीवन में माता और पिता की उत्तम भक्ति करती हैं। जब भगवान महावीर की आत्मा गर्भ-काल में थी तब अपनी माता को कष्ट