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FOROSCOCSecR900000 उतना भी नहीं।
मानव देह के एक-एक अंग-उपांग का यदि रूपयों में मूल्यांकन किया जाये तो करोड़ो रूपयों में भी उक्त मूल्यांकन नहीं हो सकता, तो फिर अंग-प्रत्यंग से परिपूर्ण सम्पूर्ण मानव देह का मूल्य कितना ? और इस प्रकार की देह-दाता माता-पिता का उपकार कितना ? महासागर जितना अपार 'वृद्धाश्रमों' का प्रारम्भ एवं प्रचलन हृदय-विदारक -
भारतीय संस्कृति में जो मूलभूत एवं महत्वपूर्ण आर्ष-वचन हैं उनमें 'मातृ देवो भव' - 'पितृ देवो भव' - 'आचार्य देवो भव' आदि वचन सम्मिलित हैं। इनका अर्थ है कि "माता को देव तुल्य मानो, पिता को देव तुल्य मानो, आचार्य (शिक्षक अथवा धर्म गुरू) को देव तुल्य मानो।" भारत वर्ष में उत्पन्न भारतवासियों का पुण्य है कि उन्हें ऐसे अद्भुत संस्कार उत्तराधिकार में प्राप्त हुए हैं। अमेरिका अथवा रूस मे तो वृद्ध माता-पिताओं को वृद्धाश्रमों में भेज देने की एक फैशन हो गई है। अत: उन देशों के निवासियों से माता-पिता की पूजा' के गुण की अपेक्षा ही कैसे की जा सकती है ? दःख की बात तो यह है कि भारतीय भव्य संस्कृति की जाज्वल्यमान गौरव-गाथाओं को भूलकर हम भी अमेरिका एवं रूस की भौतिकवाद सम्बन्धी अंधी-दौड़ के पीछे पागल हो गये हैं। 'मातृ देवो भव' एवं पितृ देवो भव का पाठ पढाने वाले भारतवर्ष में आज 'वृद्धाश्रमों का प्रारम्भ हो चूका है यह बात कितनी हृदय-विदारक है?
प्रारम्भिक प्रन्द्रह दिनों का मातृ-उपकार
राजकोट के अनाथ-आश्रम के प्रमुख संचालक महोदय ने एक मुनिराज श्री को बताया कि हमारे अनाथआश्रम में यदि माता के द्वारा प्राम्भिक पन्द्रह दिनों में ही नवजात शिशु को त्याग दिया गया हो तो उसकी सुरक्षा का अत्यन्त ध्यान रखने पर भी वह बच नहीं पाता। जाँच करने पर निष्कर्ष निकला कि जन्म के पश्चात् प्रारम्भिक पन्द्रह दिनों तक शिशु को माता की पूरी हूँक प्राप्त होनी ही चाहिये। यदि वह हूँक प्राप्त न हो तो उच्च कोटि की सावधानी रखने पर भी वह नव-जात शिशु जीवित नहीं रखा जा सकता। यह बात ज्ञात होने पर हमारी सबकी माताओं ने गर्भावस्था से लगाकर जन्म देने के पन्द्रह दिनों तक हमें वात्सल्यपूर्ण हूँक प्रदान की और हमें जीवन प्रदान किया - इस एक ही उपकार का बदला समस्त जीवन पर्यन्त उनकी सर्वोत्तम भक्ति करके भी चुकाया नहीं जा सकता। यह बात हमें स्वीकार करनी पड़ेगी।
तत्पश्चात् बालक के पालन-पोषण के लिये माता सतत चिन्ता रखती है। उसे बड़ा करने में, उसके मल-मूत्र आदि साफ करने से लगाकर पाठशाला में पढने भेजने तक अपार धन का व्यय करने में, युवावस्था प्राप्त होने पर उसे नौकरी-धंधे पर लगाने अथवा उसका विवाह करने तक के
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