Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 141
________________ JAJAJAJAY तिष्यरक्षिता को उसके प्रति अत्यन्त द्वेष था । वह उसे मार डालने का अवसर ढूँढती थी । सम्राट् अशोक को इस बात की भनक पड़ते ही उसने कुणाल को अध्ययन हेतु तक्षशिला भेज दिया। एक दिन उसकी कुशलता के समाचार लाने वाले दूत को मिल कर अशोक अत्यन्त प्रसन्न हुए और मंत्री द्वारा उसने पुत्र को उत्तर लिखवाया जिसमें एक वाक्य लिखवाया कि "कुमार : अधीयताम्'' अर्थात् कुमार को अच्छी तरह अध्ययन कराना । सौतेली माता ने गुप्त रीति से यह पत्र प्राप्त करके 'अधीयताम्' शब्द के 'अ' पर एक बिन्दी लगा दी, जिससे वाक्या बन " कुमार : अंधीयताम्' जिससे वाक्य का अर्थ पूर्णत: बदल गया कि " कुमार को अंधा कर दें।" जब दूत के द्वारा कुणाल को पत्र प्राप्त हुआ तब उसने पिता की आज्ञा क्रियान्वित करने के लिये अर्थात् अपनी आँखे फोड़ देने के लिये साथ में रहने वाले मंत्रियों को सूचित किया जब मंत्रियों ने राजा के बुद्धि-भेद होने की सम्भावना व्यक्त करके कुमार की आँखे फोड़ने का स्पष्ट इनकार कर दिया, तब स्वयं कुणाल ने जलते हुए सुइये अपनी आँखों में धौंप कर अपनी दोनों आँखे फोड़ दी । पिता की आज्ञा के प्रति कैसी अद्भुत भक्ति । कैसा आज्ञा-पालन इतिहास में कुणाल महान् पितृ-भक्त के रूप में विख्यात हुआ। वर्तमान सर्वथा कुणालों एवं केतनों का इतिहास लिखा जाये तो कदाचित् इससे सर्वथा विपरीत ही होगा। आर्यरक्षित की मातृ-भक्ति - आर्यरक्षित जब अनेक विद्याओं में पारंगत होकर अपने नगर में आये तब उनके स्वागतार्थ सैंकड़ो व्यक्ति वहाँ उपस्थित हुए, परन्तु उनके नेत्र अपनी माता को खोजते रहे। वह पुत्र का स्वागत करने के लिये आने के बदले घर में ही बैठी रही थी। जब आर्यरक्षित घर आकर सर्व प्रथम अपनी माता के चरणों में प्रणाम करने के लिये गया तब उसने माता के चेहरे पर उदासी देखी। उसने माता को पूछा "माँ। जब सम्पूर्ण गाँव तेरे पुत्र के विद्या प्राप्ति की प्रसन्नता में झूम रहा है तब तू सगी माता होकर आज उदास क्यों है ? सभी लोग गाँव के बाहर आये परन्तु तू मुझे लेने के लिये नहीं आई। ऐसी अप्रसन्नता का कारण क्या ?" - तब माता ने उत्तर दिया “पुत्र । तू जो विद्यायें प्राप्त करके लौटा है वे विद्याऐं तो संसार की वृद्धि करने वाली हैं। उनका मैं क्या स्वागत करूँ । यदि तू आत्म-कल्याणकारी विद्याऐं प्राप्त करके लौटा होता तो अवश्य तेरी माँ दौड़ी हुई वात्सल्य पूर्वक तेरे स्वागतार्थ आती।" " तो माँ तु मुझे शीघ्र बता कि आत्म-कल्याणकारी विद्या किसके पास प्राप्त होगी, जिससे तू प्रसन्न हो सके। जिससे तू प्रसन्न हो उसमें ही मेरी प्रसन्नता है।'' आर्यरक्षित ने अपनी माता को कहा। तब उसकी माता ने उसे अपने मामा आचार्य महाराज के पास जाने की बात कही। उसी www.y 13609

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