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CEROCESS090090 दशा में मूंग का पानी तो नहीं पिऊँगा।" वैद्यराज ने कहा "तो यह तीव्र ज्वर तेरे प्राण लेकर ही जायेगा।'' पति की मृत्यु की बात सुनकर घबराई हुई उस की पत्नी ने उसे बलपूर्वक मूंग के पानी के साथ औषधि दे दी। मूंग का पानी नहीं पीने के भील के अनेक प्रयासों को भील-पत्नी ने विफल कर दिये और इस एक ही प्रसंग से उसमें मुनिराज के प्रति अद्भुत सम्मान उत्पन्न हुआ और वह धर्म की ओर अभिमुख हो गया।
मुनि को असत्य-भाषी सिद्ध करने की भावना से भी किया गया मुनि-संग धर्म-प्राप्ति का कारण हो गया। ऐसा ही हुआ थ न उस इन्द्रभूति गौतम का ? समव-सरण में देशना श्रवण करके आये हुए लोगों के मुँह से सर्वज्ञ भगवान महावीर परमात्मा के अनुपम गुणों का वृत्तांत सुनकर इन्द्रभूति का मान आहत हो गया। उसने सोचा-अरे। मेरे जैसा सर्वज्ञ इस संसार में जीवित है, फिर वह दसरा सर्वज्ञ कौन उत्पन्न हो गया ? देखं तो सही, उस सर्वज्ञ में कितनी शक्ति है ? अभी जाता हूँ और चुटकी में उस सर्वज्ञ का दम्भ तार-तार कर डालता हूँ।"
अभिमान की अंबाड़ी पर सवार होकर इन्द्रभूति भगवान महावीर को पराजित करने के लिये चल पड़ा। उसके साथ पाँच सौ शिष्यों का समूह था और वे "जय वादीवेताल। वादीमदभंजक। सरस्वती-कण्ठाभरण। सर्वज्ञ इन्द्रभूति की जय" के गगन-भेदी घोष के साथ बिरूदावलि गाते जा रहे थे। परन्तु भगवान महावीर को देखते ही इन्द्रभूति वहीं शान्त हो गया और कहने लगा - अहो। यह कौन है ? क्या यह ब्रह्मा है ? विष्णु हैं ? महेश हैं ? सूर्य हैं ? यह है कौन ? अरे ये तो चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर हैं।"
वह यह विचार कर ही रहा था कि भगवान महावीर ने उसे मधुर भाषा में सम्बोधित किया, " हे इन्द्रभूति गौतम। यहाँ आओ" तत्पश्चात् उसके मन में वर्षों से घुटती हुई आत्मा विषयक शंका का वेसमाधान करते हैं, इन्द्र भूति। तुम्हारे मन में आत्मा के सम्बन्ध में संशय है न ? उसका उत्तर यह है "कहते हुए उन्होंने वेदों के उदाहरणों के द्वारा अत्यन्त ठोस तर्क से इन्द्रभूति की आत्मा-विषयक शंका का समाधान कर दिया।
____अल्प समय के प्रभु के सत्संग ने इन्द्रभूति के जीवन में अद्भुत परिवर्तन कर दिया और अत्यन्त अभिमानी उसे भगवान के चरणों में उनका शिष्यत्व दिलाकर प्रथम गणधर 'विनय मूर्ति गौतम' के रूप में इतिहास में अमर कर दिया। वह चण्डकोशिया नाग, आया था प्रभु के चरण में काटने के लिये। अनेक कार डंक मार मार कर प्रभु को मृत्यु की नींद में सुलाने के लिये निरन्तर प्रयत्न करता रहाँ, परन्तु इन क्षणों में भी उसे प्रभु का संग प्राप्त हुआ और अन्त में 'हे चण्ड कौशिक| बोध प्राप्त कर, बोध प्राप्त कर। ऐसे अमृत-वचन श्रवण कर वह सुधर गया। अनशन करके लोगों द्वारा चढाये गये घी, दूध के कारण एकत्रित चींटियों के वज्रमुखी डंक से उसकी देह छलनी हो जाने पर भी वह अपूर्व क्षमा धारी होकर आठवें स्वर्गलोक में देव बना।
___ मुनि को मिथ्या सिद्ध करने वाले भील का जीवन मुनि के संग से परिवर्तित हो गया।