Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 112
________________ REGCGCGCSE 1 cosasa595 कारण भी वर्तमान समय में जैन लोगों को जैन पड़ोस का ही विशेष आग्रह रखना चाहिये। बम्बई शहर की एक बस्ती के निवासी एक परम श्रद्धालु एवं आग्रगण्य जैन श्रावक परिवार की संस्कारी बालिका अपने ही पड़ोसी वैष्णव युवक के प्रेम में पड़ गई। दोनों का सम्बन्ध विशेष रूप से दृढ होता चला गया। उस किशोरी ने अपने प्रेमी वैष्णव युवक के साथ ही विवाह करने के दृढ निश्चय को अपने पिता के समक्ष प्रस्तुत किया। पिता ने पुत्री को वैष्णव युवक के साथ विवाह नहीं करने के लिये अत्यन्त समझाया, परन्तु जब पुत्री किसी भी तरह नहीं मानी तब अन्त में पिता को पुत्री की इच्छा स्वीकार करनी पड़ी। उस जैन बालिका का वैष्णव युवक के साथ विवाह हो गया। उस बालिका के सद्भाग्य से वह वैष्णव युवक समझदार होने से उसने अपनी जैन पत्नी को अपने धर्म के नीति-नियमों को पालन करने की अनुमति दे दी, परन्तु सभी मनुष्यों को तो ऐसा पात्र नहीं प्राप्त होता । फिर कैसी दशा होगी ? अथवा तो बालिका को अपने जैन आचारों का परित्याग करना पड़े या पति के साथ नित्य संघर्ष करने से विवाहित जीवन क्लेशमय हो जाये। जैन कन्या एवं वैष्णव पति से उत्पन्न सन्तानों में संस्कारों की संकीर्णता तो रहेगी ही। वे न तो पूर्णत: जैन हो सकेंगे और न पूर्णत: वैष्णव । यह परिस्थिति उत्पन्न ही नहीं होने देने के लिये अपने आचारविचार एवं धर्म के अनुकूल हो ऐसे पड़ोस वाला घर ही पसन्द करना हितकर होगा। जैन कन्या के मुसलमान युवक के साथ प्रेम का करूण अन्त - एक अन्य प्रसंग है। महाराष्ट के एक गांव में एक कट्टर जैन श्रावक की पुत्री का समीप ही रहने वाले एक मुसलमान युवक से परिचय हुआ। माता-पिता से अज्ञात उक्त परिचय में वृद्धि होती गई और अन्त में वह परिचय प्रणय में परिवर्तित हो गया। पुत्री के इस प्रेम-सम्बन्ध के विषय में जब माता-पिता को ज्ञात हुआ तब उन्हें भारी आघात लगा। उन्होंने पुत्री से उस मुसलमान युवक से मिलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। फिर भी वह गुप्त रूप से कभी-कभी उस युवक से मिलती रहती और कामावेश में वह उस युवक के हाथों अपना शील भी खो बैठी। फिर तो उस कन्या ने दृढ निश्चिय कर लिया कि 'यदि विवाह करुँगी तो उस मुसलमान युवक से ही करूंगी।" उसने अपना निर्णय माता-पिता के समक्ष निवेदन कर दिया। माता-पिता ने भी उसे स्पष्ट कह दिया “यदि तेरा निर्णय अन्तिम है तो तु इस घर से चली जा । हम यहीं मान लेंगे कि हमारे कोई पुत्री थी ही नहीं।" और वह कन्या घर त्याग कर चल दी और पहुंच गई उस अपने प्रेमी मुसलमान के पास परन्तु वहां परिस्थिति में परिवर्तन हो गया। उस मुसलमान युवक ने तो स्पष्ट कह दिया "मुझे तो तेरे साथ शारीरिक आनन्द लेने में ही रूचि थी। मैं तेरे साथ कदापि विवाह करने वाला नहीं हूँ, क्योंकि मैं Gece 107 107 909 con

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