Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 124
________________ CASSOSO900000 तीसरा है उत्तम पुस्तकों का संग। जीवन की सुधारक, सद्-गुणी बनाने वाली और मोक्ष मार्ग में पुष्टता प्रदान करने वाली पुस्तकों का पठन भी एक प्रकार का सत्संग है। साधुओं का संग एवं सन्मित्रों का संग पराश्रित है और इस कारण सदा प्राप्त होने वाला नहीं है। यह अमुक समय के लिये सीमित है तथा हमारी इच्छानुसार प्राप्त हो सके वैसा नहीं है, जबकि उत्तम पुस्तकों का संग स्वाश्रयी है। आपके आवास में संग्रह की हुई पुस्तकों का आपकी इच्छा हो तब आप उनका पठन कर सकते है, अत: यह सत्संग सदा आपके साथ है। जब सत्पुरुषों एवं सन्मित्रों की सत्संगति (सत्संग) का लाभ प्राप्त न हो सकेतब उत्तम पुस्तकों के सत्संग में हमें अवश्य रहना चाहिये, ताकि जीवन में सद्गुणों की प्राप्ति एवं उनकी सुरक्षा तथा वृद्धि होती रहती है। सद्गुणों का प्रवेश द्वार-सत्संग जीवन के समस्त सदगणों का प्रवेश-द्वार सत्संग है। सत्संग के प्रभाव से दोष दूर करने का मार्ग प्रारम्भ होता है, प्रशस्त होता है। हमारे जीवन में अनेक दोष एवं पाप प्रविष्ट हो चुके हैं। उन समस्त का नाश करने के लिये हमें सत्संग का आश्रय अवश्य लेना चाहिये। सत्संग के प्रभाव सम्बन्धी गुण-ज्ञान करते हुए गोस्वामी संत तुलसीदास ने कहा है - एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में भी आध। तुलसी संगत संत की, कटे कोटि अपराध।। एक घड़ी अर्थात चौबीस मिनट, अरे ! उससे भी आधी घड़ी अर्थात् बारह मिनट, अरे ! उस आधी की भी आधी अर्थात् केवल छ: मिनट भी यदि संत पुरुष की संगति (सत्संग) प्राप्त हो जाये तो करोड़ों जन्मों के पाप धुल कर साफ हो जाते हैं। सत्संग की महिमा कितनी अपरम्पार है, क्योंकि संत अर्थात् सद्गुणों का सुगन्धमय उद्यान। उद्यान में गया हुआ व्यक्ति जिस प्रकार पुष्पों से, उनकी सुगन्ध से प्रसन्न न हो यह असंभव है, उसी प्रकार से संत के सान्निध्य में गया हुआ व्यक्ति सद्गुणों की सुगन्ध से सुप्रसन्न न हो यह कदापि संभव नहीं है, और यदि ऐसा हो जाये तो समझ लेना कि अथवा तो वे सच्चे संत नहीं है अथवा वहाँ जाने वाला व्यक्ति मानव देह में पत्थर होगा, पत्थर तुल्य जड़ होगा। इतिहास के पृष्ठों को उलटा कर देखेंगे तो ज्ञात होगा कि अधिकतर सद्गुणी व्यक्ति, संत, सज्जन एवं मुनिवर किसी न किसी संत-पुरुष के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रभाव से ही सन्मार्ग की ओर उन्मुख हुए थे। वालिया डाकू किसी संत-पुरूष के प्रभाव से ही वाल्मिकी बना। पत्नी के सत्संग से कामांध तुलसीदास का संत तुलसी में रूपान्तर - संत तुलसीदास संसारी जीवन में अत्यन्त कामांध थे। एक बार उनकी पत्नी रत्नावली पीहर गई तो पत्नी की रूपहरी देह में लुब्ध बने वे रात्रि के समय वहाँ भी पहुंच गये। देर रात्रि के समय घर के मुख्य द्वार से प्रविष्ट होने में उन्हें लज्जा आने लगी। अत: घर की ऊपर की मंजिल पर जहाँ S ONGS 119 9000909ace

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