Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 127
________________ GORREASO909009 मदिरा का त्याग रहेगा। तुम इतनी प्रतिज्ञा कर लो तो भी तुम्हें अत्यन्त लाभ होगा।' यह बात सुनकर मालवी प्रसन्न हो गया और बोला "भगवन। यह तो अत्यन्त सरल एवं सुन्दर प्रतिज्ञा है। इसमें तो मदिरा के परित्याग की बात भी नहीं है और फिर प्रतिज्ञा के धर्म की आराधना का लाभ प्राप्त होता है। इससे उत्तम और क्या हो सकता है ? उसने प्रतिज्ञा कर ली और गुरू महाराज विहार करके अन्यत्र चले गये। वह प्रतिज्ञा का उचित प्रकार से पालन करता रहा। कुछ दिन व्यतीत होने के पश्चात् एक दिन मालवी को मदिरा-पान करने की तीव्र इच्छा हुई। अत: उसने गाँठ खोलने का प्रयत्न किया, परन्तु गाँठ अत्यन्त सुदृढ हो गई थी। अत: वह ज्यों-ज्यों उसे खोलने का प्रयास करता, त्यों-त्यों वह अधिकाधिक सुदृढ होती जाती थी। अब क्या हो ? मदिरा-पान की पिपासा में वृद्धि हो रही थी। उसके हाथों-पांवों की नसें खिच रही थी। अब उसे मदिरा-पान किये बिना जीना दूभर हो गया था। सालवी के स्वजन एवं परिवारजन उसकी ऐसी दयनीय स्थिति देख नहीं पा रहे थे। अत: परिवार-जनों ने उसे प्रतिज्ञा भंग करके मदिरा-पान करने का परामर्श दिया, परन्तु प्राण चले जायें तो भी उसने प्रतिज्ञा भंग करने का और उस प्रकार से मदिरा-पान करने का इनकार किया। अन्त में कुछ समय पश्चात् शुभ ध्यान में सालवी का निधन हो गया और मृत्यु के पश्चात् वह देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न हुआ। उपयोग छोड़कर अवधिज्ञान से वह उसने अपना पूर्व भव देखा तब स्वयं को ऐसा प्रण देकर शराबी से देव बनाने वाले गुरुदेव के प्रति उसके हृदय में अत्यन्त पूज्य भाव उत्पन्न हुआ और वह तुरन्त गुरुदेव के पास आया। वन्दन करने के पश्चात् उसने उन्हें निवेदन किया "भगवन्। आप द्वारा प्रदत्त प्रतिज्ञा का समुचित रूप से पालन करके मैं शराबी से देव बना, पाप-मुक्त हुआ। पाप-मुक्त होकर मैं आपके उपकार-ऋण से वृद्ध हो गया हूँ। आप मुझे कोई ऐसा कार्य बताइये जिसे करके मैं ऋण से अऋण हो सकू।" तब गुरू महाराज ने उसे शबंजय तीर्थ की रक्षा करने की प्रेरणा दी। तब से वह कदी नामक देव शत्रुजय तीर्थ का अधिष्ठायक बना और तीर्थ-रक्षा करता हुआ वह ऋण से उऋण होने का आनन्द मानने लगा। सत्संग में जीवन-परिवर्तन करने का कैसा अद्भुत सामर्थ्य है, उसका यह एक प्रेरक दृष्टान्त है। शुभ संस्कार जागृत करने के लिय सत्संग आवश्यक - पूर्व भवों में हमारी जीवात्मा को अनेक प्रकार के संस्कार प्राप्त हुए हैं, उनमें शुभ भी हैं एवं अशुभ भी हैं। मानव भव में हमारे जीव में दया एवं दान के संस्कार भी प्राप्त किये हैं और बिल्ली बनकर कबूतरों को मार कर खाने के हिंसा के कुसंस्कार भी आत्मा में भरे हैं। उनमें से कौनसे संस्कार ROCEROSS 1229090090

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