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वह वहाँ पहुंच गया और द्वार खटखटाने लगा। राजपूतानी ने भीतर से पूछा -कौन है?
राजपूत ने कहा ''मैं तेरा पति हूँ। आज रात्रि में मुझे घर में रहने दे। उस नालयक सेठ ने मुझे कारागार में डलवाया। अब उसका मैं कल ही वध करके यहाँ से भाग जाऊँगा।" राजपूतानी ने कहा "नहीं, ऐसा नहीं होगा। आपके ये बच्चे आपके समान हत्यारे न बन जायें, अत: मैं इन्हें सदाचार की शिक्षा देती हूँ और आप यहाँ आकर ऐसे अपकृत्य करके उस पर पानी फेरना चाहते हो? कृपा करके आप इन बालकों के खातिर ही सहीं, यहाँ से चले जाओ।"
पति नहीं माना। वह बलपूर्वक घर में प्रवेश करने लगा, तो राजपूतानी खड़ी हो गई। उसने पति के चरण स्पर्श करने के बहाने नीचे झुककर धड़ाधड़ बन्दूक से तीन गोलियां दागकर पति की हत्या कर दी।
गोलियों के धमाके से नींद में सोये हुए बालक जाग गये और उन्होंने पूछा "माँ! क्या हुआ?" माता ने उत्तर दिया-पुत्रों। ये कोई लुटेरा अपना संस्कार-धन लूटने के लिये आया था। अत: मैंने उसका काम तमाम कर दिया।"
___ आर्यदेश की सन्नारी ऐसी होतीहै। वह संस्कारों की सुरक्षा के लिये अवसर पड़ने पर अपने सुहाग की बलि देने में भी नहीं हिचकिचाती। मूल बात तो यह है कि यइ सम्पूर्ण दुःखद परिस्थिति का मूल दुष्ट मित्रों का पड़ोसथा। उस पड़ोसने ही राजपूत के जीवन का विनाश कर दिया। चाली एवं पालों का निवास श्रेष्ठ था -
वर्षों पूर्व अहमदाबाद, बम्बई जैसे शहरों में लोग चालियों में रहते थे, पालों में रहते थे। (आज भी मध्यम वर्ग के अनेक लोग पालों एवं चालियों में रहते हैं।) इससे अनेक लाभ थे। सामान्यतया मदिरा, मांस, जुआ आदि पापों से लोग बच जाते क्योंकि उन्हें पड़ोसियों से भय रहता था। समाज के भय से भी मनुष्य पाप करने से डरे यह भी उत्तम ही है। चालियों तथा पालों में पड़ोसी अच्छे मिलते थे, जिससे वे एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ देते थे, मृत्यु आदि के समय सान्तवना देते, उन्हें सहायता और सद्भाव प्रदान करते थे। पड़ोसी श्रेष्ठ होते तो बालकों के धर्म के संस्कार एवं प्रेरणा प्राप्त होती थी। पड़ोसी का लड़का सामायिक करने जाता तो दूसरा बालक भी सामायिक करने के लिये जाता। इस प्रकार देखा-देखी भी उन्हें धर्म के संस्कार प्राप्त होते थे। स्त्रियों के शील आदि की भी वहाँ सुरक्षा होती थी। कौन आता है ? कोन जाता है ? उसका पड़ोसियों को भी ध्यान रहता था, जिससे स्वाभाविक तौर से ही सदाचार बना रहता था। वहाँ साधु-मुनिराज भी गोचरी के लिये आते, जिससे उन्हें सुपात्रदान का भी अवसर प्राप्त होता था। सोसायटी एवं ब्लॉकों का निवास हानिकारक -
वर्तमान धनी लोग सोसायटियों और फ्लैटों में रहने लग गये हैं जो शहर से अत्यन्त दूर रहते हैं। अत: साधु भगवन्त इतनी दूरी पर गोचरी ग्रहण करने के लिये आ नहीं सकते। कदाचित् आ
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