Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 115
________________ समर्पित वस्तु पुन: नहीं दी जा सकती, ऐसा हम साधुओं का आचार है। मुनिराज समझ गये कि यह सेठ अब मानने वाला नहीं है। अत: उन्होंने नीचे झुककर लड्डुओं को रेत के साथ मिला कर नीचे डाल दिये। सुकृत की निन्दा से निकृष्ट अनुबंध - सेठ के हृदय में अपार दुःख हुआ। वे पुन: आ गये परन्तु उनके मन में निरन्तर एक ही विचार आता रहा। अरररमैं कहाँ मुनिवार से लड्डू अर्पित करने को हुआ ? मैंने अत्यन्त बुरा किया।" इस प्रकार बार-बार सुकृत की निन्दा के कारण निकृष्ट अनुबंध पड़ गया। लड्डुओं के दानधर्म के प्रभाव से उसके पश्चात् के मम्मण के भव में उसे ऋद्धि तो इतनी अपार प्राप्त हुई कि मगध का राजा श्रेणिक ऋद्धि देखकर आश्चर्य चकित हो गया। परन्तु सम्पत्ति की भयानक आसक्ति के कारण तेल और चौले खाने के अतिरिक्त उसके भाग्य में अन्य कुछ न रहा ओर उसी आसक्ति के कारण वह मम्मण मरकर सातवीं नरक में गया। मम्मण के जीव के अध:पतन का कारण था उसका बुरा पड़ोसी जिसने मम्मण के पूर्वभव के सुकृत में आग लगाकर उस के शुभ भावों का अन्तकर दिया तथा अपने सत्कर्म की अनुमोदना करने के बदले निन्दा करके सातवी नरक में जाने के योग्य पाप कर्म का उपार्जन किया। 'वज्जिजा अधम्ममित्त जोगो' - अधर्म-मित्र का परित्याग करना चाहिये। ऐसे पंच सूत्रकार परमर्षि के उपदेश में गर्भित रीति से यह भी समझ लेना चाहिये कि 'जहाँ अधार्मिक लोग बसते हो, उस स्थान का भी परित्याग करना चाहिये।' इस कारण जहाँ मांसाहारी, दुराचारी, व्यसनी, जुआरी और हिंसक मनुष्य बसते हों उस स्थान पर घर नहीं लेना चाहिये, यह अत्यन्त उचित है। यदि हमारा पड़ोसी धार्मिक एवं सुसंस्कारी होगा तो हमारे और हमारे सन्तानों के जीवन में उत्तम संस्कार डालना सरल हो जायेगा। शालिभद्र का पूर्व भव -संगम - शालिभद्र का जीव पूर्व भव में संगम नाम ग्वाला था। एक दिन किसी उत्सव के कारण समस्त लोगों के घरों में उत्तम-उत्तम मिठाईयाँ बनती हुई देखकर उसने भी अपनी माता के समक्ष हठ की "माँ। मुझे खीर खानी हैं।" उसकी माता अत्यन्त निर्धन थी। उसके पास खीर बनाने के लिये पैसे नहीं थे। अत: वह पुत्र को पीटने लगी। पड़ोसियों ने पूछा 'बाई तु अपने पुत्र को पीटती क्यों हैं ?" वह बोली- नहीं पीटू तो क्या करूं? इसे खीर खानी है और मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं।" दयालू पड़ोसियों ने उसे थोड़े-थोड़े चावल और शक्कर दी, दूध भी दिया। माता ने खीर बना दी और संगम को खाने के लिये खीर देकर वह बाहर चली गई। संगम खीर खाने बैठा परन्तु खीर अधिक गर्म होने के कारण वह उसे ठण्डी करने लगा। इतने में मासक्षमण के तपस्वी मुनि मासक्षमण के पारणे के

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