Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 113
________________ तो कट्टर मुसलमान हूँ। तेरे जैसी नायक (अपवित्र) लड़की के साथ मैं विवाह कैसे कर सकता हूँ।" अब तो उस कन्या पर मानो बिजली गिर पड़ी। वह आहत हो गई। अन्त में उसने अपनी देह पर केरोसीन छिड़ककर अग्नि-स्नान करके अपने जीवन का अन्त कर दिया। इस सम्पूर्ण प्रसंग पर हम तनिक गहराई से यदि विचार करें तो हमें ज्ञात होगा कि इस दुःखद घटना का मूल अनुचित पडोस ही था। यदि मुसलमान का पडोस नहीं होता तो इस प्रकार की घटना का सृजन, सूत्रपात ही नहीं होता। घर बसाते समय पूर्णतः जाँच करें - ___ अत: योग्य स्थान पर ही घर बसाना चाहिये। एक बार घर लेने के पश्चात् बार-बार तो उसे बदला नहीं जा सकता। अत: घर खरीदते समय अथवा निर्माण कराते समय पूर्णत: जाँच कर लेना अत्यन्त ही आवश्यक है। ___ अपनी सन्तान को आपको ऐसी शिक्षा देनी चाहिये और उनमें ऐसे संस्कार डालने चाहिये कि जिससे वे संयम दीक्षा के मंगल-पथ पर ही प्रयाण करें। यदि दुर्भाग्यवश वे दीक्षा का मार्ग नहीं अपना सकें तो उनका विवाह उत्तम संस्कारी एवं जैन परिवार में ही हो, यह तो आप भी चाहते ही होंगे। तब ही उनमें और उनकी भावी सन्तानों में जैनत्व के संस्कार बने रह सकते हैं। __इसके लिये उत्तम जैन पड़ोसी होना अत्यन्त आवश्यक है। पापोदय से कदाचित आपकी सन्तान किसी युवक अथवा युवती के परिचय में आ जाये और परिणाम स्वरूप उन्हें परस्पर विवाह करना पड़े तो पात्र जैनत्व के संस्कारों से यक्त तो प्राप्त होगा। यदि आपका पड़ोसी महाराष्ट्रीय अथवा मुसलमान हो तो आपके पुत्र अथवा पुत्री का भविष्य कितना भयावह एवं अंधकारमय सिद्ध होगा, उसकी तनिक कल्पना करें। उत्तम पड़ोसी सत्कार्यों की प्रशंसा करता है - दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि पड़ोसी उत्तम होगा तो अपने उत्तम कार्यों की उसके द्वारा प्रशंसा होगी तो अपने उत्तम कार्यों को गति मिलेगी, हमें अधिक उत्तम कार्य करने का प्रोत्साहन प्राप्त होगा। __ यदि पड़ोसी बुरा हो, जैन नहीं हो, स्वभाव से धर्म-विहीन हो तो हमारे धार्मिक एवं शुभ कार्यों की प्रशंसा नहीं करेगा अथवा कभी निन्दा-आलोचना भी करेगा, जिससे हमारे उन शुभ कार्यों को विपरीत दिशा की ओर ले जायेगा तो आत्मा का अत्यन्त अहित हो जायेगा। मम्मण का पूर्व भव - मम्मण सेठ पूर्व भव में अत्यन्त उल्लास पूर्वक मुनिवर को केसरिया लड्डु वहेराये (समर्पित किये)। मुनिवर के जाने के पश्चात् वहाँ कोई पड़ोसी मिलने के लिये आया। उसने पूछा 'क्यो सेठ। लड्डू आपने खाया अथवा नहीं?" GGOOGO 108 9000909

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