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चुनीलाल असत्य बोल रहा है, उसकी नीति भ्रष्ट हो गई है। परन्तु अब क्या हो सकता है ?
उन चार नंगों के मूल मालिक मुसलमान भाई जब भाइचंद के पास नंग लेने आये तब उसने उन्हें सम्पूर्ण परिस्थिति से अवगत करा दिया और उन नंगों के पुनः प्राप्त होने की कोई सम्भावना नहीं होने से उनका मूल्य देने की बात उन्हें कह दी।
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भाइचंद की नीतिमता पर उन मुसलमान भाइयों को पूर्ण विश्वास था, फिर भी उन्होंने कहा, “भाइचंद भाई! आज तो उन नंगों के भाव अत्यन्त अधिक हैं, परन्तु सत्य बात यह है कि हमारे नंग शकुन में प्राप्त हुए थे, और शकुन की वस्तु हम भला कैसे बेच सकता है। हमें तो वे ही नंग पुनः प्राप्त होने चाहिये।’”
भाइचंद भाई ने पुनः उनको प्राप्त करने का प्रयास करने की बात कह कर मुसलमान भाइयों को घर भेज दिया और वह पुन: चुनीलालके पास आया, परन्तु चुनीलाल ने किसी भी प्रकार से नंग अपने पास होना स्वीकार नहीं किया। इस पर तंग होकर भाइचंद चुनीलाल के घर से सीधा उन मुसलमान भाइयों के घर पहुँचा और उन्हें कहा, "भाइयो! चुनीलाल किसी भी तरह मानने के लिये तैयार ही नहीं है। अब आप ही बताइये - मैं क्या करूं? आप उनको जो मूल्य निश्चित करो वह मैं देने के लिये प्रस्तुत हूँ ।"
वे मुसलमान भाई मूल नंग ही पुनः प्राप्त करने की बात कह रहे थे। यह वार्तालाप पिछले कमरे में बैठे इन मुसलमान भाइयों के पिता अलीहुसेन सुन रहे थे । तसबी (माला) फिराते हुए खुदा का स्मरण करते-करते वे बाहर आये।
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उन्होंने कहा, “मैंने आप सबकी बात भीतर बैठे बैठे सुनी है। मुझे भाइचंद और उसकी नीति के प्रति पूरा भरोसा है। वे बोले, “भाइचंद! तुम एक काम करो। चुनीलाल को यहाँ बुला लाओ। मैं तुम्हारा बिचौलिया बनूँगा और मैं जो फैसला कर दूँ वह तुम स्वीकार कर लेना ।"
भाइचंद भाई को तो यह बात मान्य ही थी । वह दूसरे दिन चुनीलाल को साथ लेकर अली हुसेन के पास आया।
सभी बैठे हुए थे। अली हुसेन ने पूछा, “चुनीलालजी ! आप बहुत ईमानदार जौहरी है। आप सत्य कहिये कि भाइचंद ने जो ड़िबिया आपको दी थी उसमें आप द्वारा खरीदे गये चार नंगों के अतिरिक्त अन्य चार नंग थे अथवा नहीं?"
तब चुनीलाल ने तुरन्त उत्तर दिया, "नहीं, नहीं, चाचा, मेरे खरीदे हुए नंगों के अतिरिक्त ड़िबिया में अन्य नंग थे ही नहीं। यह बात मैं अपने पुत्र की शपथ पूर्वक कह रहा हूँ। भाइचंद पूर्णत:
असत्य कहता है । "
अली हुसेन ने कहा, "अररर! चुनीलाल ! यह तुमने क्या किया? इतनी छोटी सी बात में तुमने अपने पुत्र की सौगन्ध खा ली? या अल्लाह ! या खुदा!”
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