Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 108
________________ मार्गानुरागी आत्मा का सातवाँ गुण है - उचित घर | सर्व प्रथम बात तो यह है कि 'घर बनाना ही नहीं' ज्ञानी पुरूषों के इस उपदेश को क्रियान्वित करना। संस्कृत में घर के लिये 'अगार' शब्द है और साधु को 'अणगार' कहा जाता है। अणगार का अर्थ यह है कि जिसके घर नहीं है वह अणगार। साधु को 'अणगार' क्यों कहा जाता है ? . साधु सर्व-संग के त्यागी हैं, ससार में समस्त सम्बन्धों से मुक्त हैं, तो उन्हें 'अणगार' अर्थात 'घर बार विहीन' कहकर क्यों संबोधित किया गया ? पत्नी विहीन, पुत्रादि विहीन, धनादि विहीन न कहकर उन्हें घर-बार विहीन क्यों कहा गया ? इसका उत्तर यह है कि 'घर' ही समस्त संसार का मूल है। यदि संसारी मनुष्य के 'घर' नहीं हो तो वह पत्नी को कहाँ रखेगा ? पुत्रादि की कहाँ सुरक्षा करेगा? और घर-विहीन, पत्नी-पुत्रादि विहीन को धन की भी क्या आवश्यकता है ? इसका अर्थ तो यह हुआ कि 'घर' है तो सब कुछ है अर्थात घर है तो समस्त संसार है। - घर हो तो पत्नी-पुत्र आदि की सुरक्षा होती है। घर हो तो धन आदि का उपयोग सार्थक माना जाता है। घर हो तो अतिथि आदि आते हैं। इस प्रकार संसारी मनुष्य के लिये 'घर' अनिवार्य अंग माना जाता है। इस दृष्टि से ही साधु को 'घर-विहीन' अर्थात् 'अणगार' कह दिया। अत: साधु, पत्नी-पुत्र आदि विहीन, धन आदि विहीन एवं परिग्रह-विहीन स्वत: ही सिद्ध हो गये। इस प्रकार साधु के लिये 'अणगार' विशेषण सार्थक ही है। __साधु यदि अणगार' है तो संसारी (गृहस्थी) मनुष्य अगार-युक्त अर्थात् घर वाला है, क्योंकि साधु की अपेक्षा संसारी को घर की अत्यन्त आवश्यकता है। जहाँ तक संभव हो, और शक्ति हो तब तक श्रावक को घर का परित्याग करके 'अणगार' बनने की भावना रखनी चाहिये, परन्तु जिस व्यक्ति की ऐसी शक्ति नहीं हो उसे तो घर बनाना, घर का निर्माण कराना ही पड़ेगा। घर के औचित्य का उपदेश क्यों ? तब श्रावक को घर कहाँ बनाना चाहिये और घर किस प्रकार का होना चाहिये आदि बातों को ज्ञानी पुरूषों ने मार्गानुसारी गुणों में सम्मिलित कर लिया। घर के औचित्य का उपदेश देने के पीछे शास्त्रकारों का यही शुभ आशय रहा है कि घर का ऐसे स्थान पर निर्माण कराना चाहिये तथा ऐसे प्रकार का घर निर्माण कराना चाहिये जिससे जीवन में उत्तरोत्तर धर्म की आराधना में अभिवृद्धि होती रहे और आत्मा अधर्म में से अधिकाधिक दूर हटती चली जाये। अबकिस प्रकार का घर'उचित' कहलाता है उस विषय में हम विचार करते हैं। Recene 103 909090907

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