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1. अनेक द्वार युक्त अथवा एक ही द्वार युक्त न हो -
___ आवागमन हेतु, अनेक द्वार वाला घर नहीं होना चाहिये। यदि आवागमन के लिये अनेक द्वार हो तो हमसे अज्ञात चोर-लुटेरों आदि दुष्ट लोगों को चोरी करने के सुअवसर प्राप्त हो जायें। वे कहीं से प्रविष्ट हो जायें और कहीं से बाहर निकल जायें, जिसका हमें पता नहीं रहेगा। तदुपरान्त कभी स्त्रियों के शील को भी खतरा उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि कोई दुष्ट-दुराचारी व्यक्ति स्त्रियों के शील आदि भंग करके कहीं होकर गुप्त रीति से भाग सकते हैं।
उपर्युक्त दोनों कारणों से घर के अनेक द्वार नहीं होने चाहिये।
हमारे मन सामान्यतया निमित्तवासी हैं। यदि जीव को शुभ निमित्त प्राप्त हो जायें तो वह शुभ कार्यों में भी लग सकता है और यदि उसे अशुभ निमित्त प्राप्त हो जाये तो उसे अशुभ क्रियाओं की ओर प्रवृत्त होने में विलम्ब नहीं लगेगा।
घर के अनेक द्वार होने से उत्तम घर की स्त्रियों की भी मनोवृत्ति कभी पाप करने की ओर आकर्षित हो जाती है। प्राचीन समय में राजाओं के भव्य प्रसादों में अनेक द्वार हाते थे और अनेक अनेक रानियाँ होती थी, जिससे काम-वासना से अतृप्त रानियाँ महावत, सेवक, चाकर आदि अन्य निम्न श्रेणि के पुरुषों के सम्पर्क में आकर अपना सतीत्व नष्ट करती थी। उन्हें इस प्रकार की अनुकूलता प्रदान करने में महल के (घर के) अनेक द्वार सहायक बनते थे।
इस दृष्टि से ही ज्ञानी पुरुष घर के अनेक द्वार नहीं होने की बात कहते हैं जो सर्वथा उचित
निमित्तवासी फिर भी ब्रह्मचारी रामकृष्ण -
निमित्त प्राप्त होने पर भी उससे अलिप्त रहने वाले पुरुष विश्व में विरले ही होते हैं। स्वामी विवेकान्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस परम निष्ठावान् ब्रह्मचारी थे।
उन्होंने शारदामणी नामक स्त्री के साथ विवाह किया था, परन्तु विवाह के दिन ही संध्या के समय उन्होंने शारदामणी की माँ के रूप में पूजा कर ली थी। उस दिन से वे उसे 'माता शारदामणी देवी' के नाम से सम्बोधित करते थे।
शारदामणी के हृदय में भी निर्मल, विशुद्ध प्रेम था। राम-कृष्ण के द्वारा स्वयं को विषयसुख प्राप्त हो, काम-वासना तृप्त हो उसकी लेशमात्र भी अपेक्षा रखे बिना उसने उनकी सेवा करने का ही व्रत ले लिया था। और इस कारण ही वे दोनों आदर्श पति एवं पत्नी विवाह के दिन से ही सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अत्यन्त ही सहज भाव से करते थे।
एक दिन शिवनाथ नामक व्यक्ति ने अपने मित्रों के समक्ष रामकृष्ण की अत्यन्त आलोचना की 'इस प्रकार किसी स्त्री का जीवन नष्ट कर डालना रामकृष्ण के लिये तनिक भी शोभनीय नहीं
है।"
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