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बड़ा रास्ता बना हुआ है। लोगों के जाने के लिये यह संक्षिप्त मार्ग है, परन्तु मेरे पिताजी नवीन कार्य करने की बुद्धि-विहीन धुन में उस बड़े रास्तो को बंद करके नवीन रास्ता खोलने के लिये गये हैं। मेरा विश्वास है कि पुराना मार्ग बन्द करने से लोगों को अपार कष्ट होगा और नया मार्ग नहीं बन पायेगा, क्योंकि मार्ग बनाने में अनेक वर्ष व्यतीत हो जाते हैं। यह पिताजी की मूर्खता नहीं हो और क्या है?"
पदमशी भाई सुबुद्धि की दूरदर्शिता देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। पुराना होने मात्र से वह तोड़ा नहीं जा सकता
वर्तमान काल के अनेक डिग्रीधारियों एवं बुद्धिजीवियों को प्राचीन परम्परा के मूल्यों के प्रति अत्यन्त तिरस्कार होता है। प्राचीन रूढियों की तो वे निन्दा ही करते रहते हैं। पता नहीं उन्हें पाश्चात्य शिक्षा का कैसा विष पिला दिया गया है, कुछ समझ में नहीं आता।
अपार कठिनाइयों के मध्य, आँधियों और तूफानों के मध्य भी जो परम्पराएँ, जो मूल्य और जो रूढियाँ अविच्छिन्न रही हैं, जो अखण्ड रूप से स्थिर रही हैं, वे निश्चित रूप से जनता का हित कर सकती हैं। उन मूल्यों और रूढियों को पुरानी होने के कारण ही तोड़ डालने की चेष्टा कैसे की जा सकती है? उससे तो अत्यन्त अनर्थ हो जायेगा।
___ यदि 'पुराना' होना अपराध हो तो आज नवीन माने जानेवाले मूल्य, संशोधन एवं योजनाऐं कल पुरानी होने वाली ही है, तो फिर क्या वे भी समाप्त कर देने योग्य ही मानी जायेंगी?
जिसकी जड़ें अत्यन्त गहरी चली गई हैं उस आम के वृक्ष को उखाड़ फेंकने से तो न तो किसी को आम खाने को मिलेंगे और न किसी को वृक्ष की छाया ही मिलेगी।
आजकल पुराने वृक्षों को काट कर बड़े-बड़े जंगल साफ किये जाते हैं और दूसरी ओर 'वृक्षारोपण सप्ताह' मनाये जाते हैं। वृक्षारोपण करते हुए मुख्य मंत्रियों के चित्र समाचार-पत्रों आदि में छपते है, यह सब मूर्खता नहीं तो और क्या है? महात्मा गाँधी के वचन
___ गाँधीजी ने परम्परागत मूल्यों के लिये सम्मान-सूचक जो वचन हिन्द-स्वराज्य' पुस्तक में कहे हैं वे पठनीय हैं। उन्होंने कहा है कि, "हमारी परम्परागत मूल्यों की सम्पत्ति में तनिक भी संशोधन-परिवर्द्धन मत करना, क्योंकि हमारे वे मूल्य नीति एवं इन्द्रिय निग्रह पर खड़े हुए हैं। वर्तमान तथाकथित सुधार नीति एवं निग्रह विहीन हैं। ऐसे सुधारों को तो मैं सौ सौ काले नागों से परिपूर्ण टोकरी मानता हूँ।"
इसी सन्दर्भ में उन्होंने एक अन्य स्थान पर लिखा है कि, वर्तमान सुधारों से कोई लाभ भले ही हुआ हो, परन्तु इतने से ही मैं उन्हें श्रेष्ठ नहीं कहूँगा, क्योंकि अनेक हानियाँ भी होती हैं। अत: ये सुधार कथाओं में वर्णित मणिधर नाग के समान हैं जो मणि के कारण सुन्दर प्रतीत होते हुए भी विष के कारण घातक है।
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