Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 89
________________ Commerc900098906 न्यायालय ने उन्हें साधारण ही सही परन्तु दण्ड अवश्य दिया। जब उन दोनों इण्डोनेशिया के नागरिकों में हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) में अपील की तो वह खारिज कर दी गई और उक्त दण्ड को यथावत् रखा गया। इस प्रसंग से स्पष्ट है कि अमुक देश के प्रसिद्ध आचारों से हमें अवश्य अवगत रहना चाहिये। यदि उस बात का ज्ञान ही नहीं होगा तो उस आचार का पालन करना कैसे संभव होगा? स्वधर्मी भक्ति के प्रभाव से तीर्थंकर नामकर्म हमारे प्रांगण में आये अतिथि को कदापि खाली नहीं लौटाना भी एक उत्तम आचार है। अपने समानधर्मी व्यक्ति की भक्ति करना भी एक उत्तम आचार है। समानधर्मी व्यक्ति की भक्ति के प्रभाव से संभवनाथ भगवान तीर्थंकर बने थे। वे संभवनाथ के रूप में आये उससे तीसरे भव में धातकी खण्ड में ऐरावत क्षेत्र में क्षेमपुरी नामक नगरी के विमलवाहन नामक राजा थे। उनके शासनकाल में एक बार भयानक दुर्भिक्ष पड़ा था। उस समय उन्होंने दीर्घ काल तक नगर के समान धर्मी व्यक्तियों की उत्तम पकवानों (खाद्य पदार्थों) के द्वारा भक्ति की थी, जिसके प्रभाव से उन्होंने तीर्थंकर नामकर्म अर्जित किया। तत्पश्चात् दीक्षा अंगीकार करके वे काल-क्रम से मरणोपरान्त देवलोक में गये और वहीं से इस चौबीसी में तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ बने थे। जिस समय संभवकुमार का जन्म हुआ था, तब नगर में भयंकर दुर्भिक्ष चल रहा था, परन्तु उनके जन्म के प्रभाव से चारों ओर से पर्याप्त अन्न प्राप्त हुआ और नगर में सुकाल सुकाल हो गया। इस कारण ही कुमार का नाम संभव' रखा गया था। दृढ़ प्रतिज्ञ राजा दण्डवीर्य यह प्रसंग राजा दण्डवीर्य का है जो भरत चक्रवर्ती के वंशज थे। राजा दण्डवीर्य को समान-धर्मी व्यक्तियों की भक्ति किये बिना चैन नहीं पड़ता था। अपने घर पर आये हुए समानधर्मियों को भोजन कराने के पश्चात् ही वे भोजन करते थे। उनके इस नियम की परीक्षा लेने के लिये एक बार स्वयं देवेन्द्र इन्द्र आये। उन्होंने अपनी दैवी शक्ति के प्रभाव से लाखों समान धर्मी उत्पन्न करके राजा दण्डवीर्य के भवन पर भेजने प्रारम्भ किये। प्रथम दिन तो सायंकाल तक निरन्तर स्वधर्मी आते रहे और राजा दण्डवीर्य सबको प्रेमसहित, भावपूर्वक भोजन कराते रहे। दूसरे दिन भी स्वधर्मी आते ही रहे और सूर्यास्त तक वे उन्हें भोजन कराते रहे। राजा के प्रथम दिवस का तो उपवास था ही, और आज दूसरा उपवास भी कर लिया। इस प्रकार निरन्तर आठ दिनों तक समान-धर्मी बन्धु आते ही रहे, परन्तु तनिक भी आकुलता अनुभव किये बिना पूर्ण GOOGGE 849090989090

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