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पूरे छ: मिनट तक रमेश उसे गालियाँ देता रहा, परन्तु जब गालियों का कोई उत्तर नहीं प्राप्त हुआ तो वह तनिक व्याकुल हुआ।
उसने पूछा "तुम हो तो धर्मेश ही अथवा कोई अन्य हो ? उत्तर क्यों नहीं देते हो?" तब फोन पर केवल इतना हीं सुना गया (रोंग नम्बर) गलत नम्बर हैं।" इस पर रमेश फीका पड़ गया।
कोई भी व्यक्ति जब हमारी निन्दा करता हो तब तुरन्त ही हमें मन में बोलना चाहिये "रोंग नम्बर" अर्थात् यह मुझे नहीं कह रहा है, यह तो किसी अन्य को कह रहा हैं।"
यह विचार हमें निन्दा की प्रति निन्दा करने से, गाली देने वाले को गाली देने से रोकता है। इससे हम दुःखी नहीं होते। इस कारण ही यह शुभ विचार है।
तदुपरान्त जब कोई व्यक्ति गाली देता हो तब यदि हम उस गाली को स्वीकार नहीं करें तो वह गाली नहीं स्वीकार किय गये रूपये की तरह उसके पास ही पुन:जाती है। निन्दकों को कदापि उत्तर मत दीजिये -
स्मरण रहे, निन्दकों के पाँव अत्यन्त अशक्त होते हैं। उनसे हमें घबराने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। यदि हम उसका प्रतिकार प्रति-निन्दा करके करेंगे तो उल्टा उसे अनुचित बल प्राप्त होगा और उसके मन में होगा कि "अपनी बात का भी महत्व है।"
उसके बदले हमें पूर्णत मौन रहना ही हितकर है। चीखने-चिल्लाने वाला सदा थकता है, मौन रहने वाला कदापि नहीं थकता।
___अत: जो जितनी निन्दा करना चाहे उसे उतनी निन्दा करने दें। हमारा तो अमोध शस्त्र है मौन। हमारा मौन ही निन्दक की हमें उत्तेजित करने की योजना को धराशायी कर देता है।
इस कारण मिथ्या निन्दाओं एवं पत्रिका-बाजी का कदापि उत्तर नहीं देना ही अनेक कुशल बुद्धिमान मनुष्यों की पद्धति होती है। यह सदा स्मरण रखने योग्य है कि मौन में जो शक्ति है वह निन्दा में कदापि नहीं है।
जो लोग उत्तम एवं धर्ममय जीवन व्यतीत करना चाहते हैं उन्हें उन तीन बन्दरों को स्मरण रखना चाहिये। पहला बन्दर मुंह पर हाथ रखकर यह बताता है कि दूसरों की निन्दा हो वैसा कदापि नहीं बोलें, दूसरा बन्दर आँखो पर हाथ रखकर बताता है कि अन्य व्यक्तियों की कुचेष्टाओं को नहीं देखें और तीसरा बन्दर कानों पर हाथ रखकर यह बताता है कि जब दूसरे लोग निन्दा कर रहे हो तब आप उसे सुने भी नहीं। निन्दा से होने वाली अनेक हानियाँ
1.पर-निन्दा तथा स्व-प्रशंसा करने से करोड़ोंजन्मों में भी नहीं छूटने वाला चिकना नीच
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