Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 96
________________ SONGSSAG090989096 संत की इस निन्दा में उसके भक्तगण भी योग देते । इस प्रकार भक्त और उनके गुरू निरन्तर वेश्या की निन्दा में लीन रहते। वह वेश्या नित्य उस साधु को देखती और मन ही मन सन्त की अत्यन्त प्रशंसा करती और अपनी स्वयं की आत्म-निन्दा भी साथ ही साथ करती। वह कहती "कितना उत्तम जीवन है उस साधु का। कैसा पाप-रहित है उसका जीवन! धन्य है उसे, जो स्वयं निष्पाप -जीवन जीता है और अन्य जीवों को भी पाप-रहित जीवन जीने का उपदेश देता है इधर मेरा यह जीवन, केवल पापों से परिपूर्ण है। इस प्रकार का जीवन जीने के लिये इतने घोर पाप करने की अपेक्षा तो मृत्यु हो जाये तो कितना उत्तम है।" इस प्रकार वह वेश्या निरन्तर अपनी स्वयं की निन्दा और सन्त की प्रशंसा करती और एक दिन स्वर्ग-लोक से विमान आया। साधु और उसके भक्तों ने सोचा "हमारे गुरुदेव को लेने के लिये ही यहविमान उतर आया है।" परन्तु यहक्या ? विमान तो साधु के द्वार पर आने के बदले वेश्या के द्वार पर ठहरा और देखते ही देखते वेश्या को लेकर उड़ गया। इस रहस्य का भेद स्पष्ट करते हुए किसी ज्ञानी पुरूष ने कहा, "इसका कारण यह है साधु निष्पाप-जीवन यापन करते होने पर भी उनके पक्ष में वेश्या की निन्दा करने का पाप अत्यन्त भयंकर था जिसने समस्त उत्तम गुणों को दबा लिया, जबकि वेश्या का जीवन पापपूर्ण होते हुए भी साधु के निष्पाप-जीवन की प्रशंसा करने का उसका एक सद्गुण अत्यन्त उच्च कोटि का था, जिसने उसे स्वर्ग के विमान के योग्य ठहराया।" निन्दा की अशक्तता क्यो? निन्दा की सबसे बड़ी अशक्तता यह है कि वह अपने सर्वाधिक निकटस्थ व्यक्ति की ही की जाती है। हिन्दू लोग जितनी मुसलमानों की निन्दा नहीं करेंगे उतनी वे हिन्दुओं की ही करेंगे। उसमें भी वैष्णव सम्प्रदाय वाले अपने ही सम्प्रदाय के मनुष्यों की, शैव सम्प्रदाय वाले तथा स्वामिनारायण सम्प्रदाय वाले भी अपने अपने मनुष्यों की ही निन्दा करते प्रतीत होते हैं। जैनों में भी यही स्थिति प्रतीत होती है। स्व पक्ष वाले व्यक्ति पर पक्ष के व्यक्तियों की अपेक्षा स्व-पक्ष के ही व्यक्तियों की निन्दा करने में अत्यन्त रूचि लेते हैं। निन्दा की उत्पति कहाँ से होती है ? __ निन्दा की उत्पति अहंकार में से होती है और उस अहंकार में जब ईर्ष्या मिश्रित हो जाती है तब ही निन्दा रूपी पुत्र का जन्म होता है। इस दृष्टि से निन्दा का पिता है अहंकार और माता है ईर्ष्या। अहंकार के कारण स्वयं के ही गुण देखने की वृत्ति अनेक व्यक्तियों में होती है और इस कारण ही जब किसी अन्य व्यक्ति के गुणगान होने की बात जब वे सुनते हैं तब उनकी ईर्ष्या भभक उठती है और उस गुणवान पुरुष के गुणों के विषय में अधिकाधिक सुनते रहते हैं तब उस ईर्ष्या के गर्भ

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