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पितामह ने उत्तर दिया, "मेरी यह वेदना मैं सहन नहीं कर पा रहा हूँ उसका कारण तू ही है, क्योंकि सभा में वह पापी दुःशासन जब तेरे वस्त्र खींच रहा था तब उभय पक्षों के सम्माननीय वयोवृद्ध व्यक्ति के रूप में मैं तेरा उक्त वस्त्रा पहरण रोक सकता था, परन्तु मैं मौन रहा, कुछ नहीं बोला और तेरे वस्त्र खिंचते रहे। मैंने कैसा घोर पाप किया? इस कारण ही आज मैं इस वेदना का कष्ट भोग रहा हूँ।"
द्रौपदी ने विनयपूर्वक पूछा, "पितामह ! मेरे हृदय में भी बहुत समय से इस बात का मंथन चल रहा था, परन्तु आज आपही ने यह बात छेड़ दी तो आप यह भी बता दीजिये कि उस समय आप मूक क्यों बने रहे? क्या धृतराष्ट्र ने आपको मौन रहने के लिये विवश किया था?"
"द्रौपदी! यह बात नहीं है।" एक वेदनापूर्ण नि:श्वास के साथ वे बोले, "द्रौपदी ! उस दिन मैंने उस दुष्ट दुर्योधन का भोजन किया था, जिससे मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और मैं मूक रहा।"
अनीति के धन से प्राप्त भोजन का परिणाम देख लिया न आपने? भीष्म जैसे महान् धर्मात्मा पुरुष की बुद्धि भी इसने भ्रष्ट कर दी। अनीति किये बिना कैसे चले? इसका उत्तर -
आज अनेक मनुष्य तर्क करते हैं कि चोरी किये बिना जीवित ही कैसे रहा जा सकता है? आयकर आदि की चोरी के रूप में अनीति यदिन करेंतो हमारे भूखों मरने का समय आजायेगा।
इस प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व हम अनीति को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं।
1. सामान्य जनता के साथ किये जाते धोखे, झूठ, विश्वासघात आदि के रूप में अनीति।
2. प्रशासन के साथ की जाती आयकर की चोरी के रूप में अनीति।
अब इसमें सर्वप्रथम बात तोयही है कि जीवन की आवश्यकताओं को पूर्णत: सीमित कर दिया जाये तो अधिक धन उपार्जन करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और यदि अधिक धन उपार्जन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी तो अनीति नहीं करनी पड़ेगी।
इस प्रकार अनीति का मूल जीवन की अधिक आवश्यकताएं हैं। कम से कम आवश्यकताओं से जो मनुष्य जीवन यापन कर सकता हो वह आज निश्चित रूप से नीतिपूर्वक जीवन जी सकता है।
परन्तु यदि सभी के साथ इस प्रकार की त्याग-वृत्ति संभव न हो तो सर्वप्रथम जनसाधारण के साथ जो धोखा, विश्वासघात, झूठ आदि के आचरण से अनीति की जाती है उसका तो सर्वथा त्याग करना चाहिये।
सचमुच वर्तमान सरकार ने प्रजा के लिये ऐसे नियम बना दिये हैं जिससे मनुष्य को अनेक प्रकार के पाप करने के लिये विवश होना पड़ा है।
फिर भी पाप तो पाप ही है, चोरी अर्थात् चोरी, फिर वह नियमानुसार हो अथवा नियम
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