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हो जाता है और जिस देश की नारी शीलवती नहीं होंगी उस देश की प्रजा सदाचारी एवं सत्त्वयुक्त कैसे हो सकेगी ? इस कारण ही नारी को अपने शील की रक्षार्थ नौकरी आदि से होने वाले लाभों को तिलांजलि देनी चाहिये।
हिटलर के समान शासक भी जब नारी के लिये घर, पति तथा बालकों की देख-भाल को ही उचित मानता हो, तब भारत के अनेक शिक्षित डिग्रीधारी लोग नारी को घर के बंधनमुक्त वातावरण से मुक्त करके बाहर के क्षेत्र में आगे लाने की बातें कर रहे हैं और इस प्रकार भारतीय नारियों के शील (सतीत्त्व) के प्रश्न को जटिल बना रहे हैं, जो कितना दुःखद माना जाता है। औरंगजेब का शिष्टाचार के प्रति प्रेम
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इसी प्रकार का एक अन्य प्रसंग है जो औरंगजेब की नारी सम्मान की भावना का सूचक है। एक बार उसकी पुत्री जेनुन्निसा ढाका की अत्यन्त बारीक मलमल की साड़ी पहनकर उसके पास आई, जिसमें से उसके अंग-प्रत्यंग स्पष्ट दिखाई देते थे। यह देखकर औरंगजेब क्रोधित हो गया और उसने आज्ञा दी, “इस निर्लज्ज नारी को यहाँ से ले जाओ। यह मेरी पुत्री हो ही नहीं सकती और इसे अभी इसी समय जला दो।"
निस्सन्देह, औरंगजेब द्वारा उसे जला डालने का दिया गया आदेश तनिक भी उचित नहीं था, परन्तु अपनी पुत्री भी अशिष्ट उद्भट वेशभूषा धारण करे, वह उसे तनिक भी मान्य नहीं था । इस दृष्टि से औरंगजेब की शिष्टाचार-प्रियता की उस अंश में प्रशंसा की ज्ञानी चाहिये।
अकाल पीड़ित मनुष्यों का भी उत्तम शिष्ट गुण
आठ आठ वर्षों से जहाँ पानी की एक बूंद भी नहीं गिरी थी, राजस्थान के जैसलमेर जैसे शुष्कतम प्रदेश में लोगों के खाने के लिये अन्न का सर्वथा अभाव था, आठ आठ भयंकर अकालों ने लोगों की कमर तोड़ दी थी, परन्तु उन्होंने साहस नहीं खोया । 'जैसा हमारा कर्म' कहकर वे भूख की दारुण दुःख सहन कर रहे थे।
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दीन दुःखियों के आधार तुल्य दो उदार पुरुष एक दिन उस प्रदेश में आये। उनके साथ एक ट्रक था खचाखच बाजरी से भरा हुआ था।
उन दोनों पुरुषों ने लोगों को बुला कर कहा, "हमें अभी अनेक स्थानों पर जाना है। यह बाजरी हम यहाँ ड़ाल देते हैं। इस देर में से आप सब अपनी अपनी आवश्यकतानुसार बाजरी ले जाना। हम एक सप्ताह के पश्चात् पुनः यहाँ आयेंगे तब आपसे अन्य बातें करेंगे।'
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एक सप्ताह व्यतीत होने पर वे उदार पुरुष पुनः वहाँ आये तब उन्होंने वहाँ जो आश्चर्य देखा जिसे घड़ी भर के लिये उनका मन मानने के लिये तैयार नहीं हुआ। बाजरी का देर ज्यों का त्यों पड़ा था। उनके विस्मय का पार नहीं रहा। उन दोनों ने लोगों को इसका कारण पूछा तब लोगों ने बताया, "हम निर्धन अवश्य हैं, हमें अन्न की भीषण आवश्यकता भी है, परन्तु हम निःशुल्क अन्न
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