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चतुर्थ गुण पाप न करे तीव्र भाव से...
पाप - भीरूता भारतीय संस्कृति बताती है कि आर्य देश का कोई भी व्यक्ति पाप करेगा ही नहीं, क्यों? नीतिशास्त्र ने इसके भिन्न-भिन्न कारण बताये हैं।
सांसारिक व्यवहार में कायरता-भीरूता दुर्गुण है, परन्तु आध्यात्मिक क्षेत्र में पापाचरण के प्रति भीरूता को गुण माना गया है। ____ जो पाप-भीरू है वह प्राय: दुःखी नहीं रहेगा और कदाचित् पूर्व भव के पापोदय से बाह्य रूप से दुःखी हो जाये, तो भी उसकी मानसिक स्थिति उन दुःखों के कारण दीनतापूर्ण नहीं होगी।
समस्त दुःखों का मूल पाप है - यह ज्ञात होने के पश्चात् दुःख भीरू होने के बदले अब पाप-भीरू होने की अत्यन्त आवश्यकता है। ___पाप-भीरू क्यों होना चाहिये? हमारे देश के राजा ही नहीं, चोर एवं बागी भी कैसे पाप-भीरू थे? पाप-भीरू बनने के लिये हमें क्या करना चाहिये?
इस प्रकार के प्रश्नों एवं प्रसंगों के प्रस्तुतीकरण के साथ स्पष्ट करते इस गुण का आप अवश्य पठन-मनन करें। मार्गानुसारी आत्मा का चतुर्थ गुण है - पापों से भीरूता।
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