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शील अर्थात् आचार-विचार, यह भी दोनों पक्षों का समान होना चाहिये ।
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एक व्यक्ति मांसाहारी हो और दूसरा व्यक्ति शुद्ध शाकाहारी हो, एक मदिरा पान करने वाला हो और दूसरा मदिरा का त्यागी हो, एक रात्रि भोजन, कन्दमूल आदि का त्यागी हो और दूसरा उसका उपभोक्ता हो तो अत्यन्त कठिनाई हो जायेगी ।
एक व्यक्ति का स्वभाव शान्त हो, जबकि दूसरा व्यक्ति अत्यन्त क्रोधी हो, एक व्यक्ति धार्मिक हो और दूसरा व्यक्ति सर्वथा नास्तिक हो, तो ऐसे कुजोड़ों में सतत संघर्ष, क्लेश, कलह आदि रहता है, जिससे दोनों के तथा उनकी सन्तानों के हृदय में भी सतत उद्वेग रहता है, जीवन में विपरीत प्रभाव दृष्टिगोचर होता है और कभी कभी एक दूसरे का वध कर डालने की घटनाऐं भी हो जाती हैं।
न्यायालय में पति का वध करने वाली साधना
अंकारा नामक गाँव में घटित एक घटना का मुझे स्मरण हो आया है। कुछ वर्ष पूर्व की बात है। कॉलेज में अध्ययन करते समय रमेश एवं सलमा का परस्पर प्रेम हो गया। वे एक दूसरे पर मोहित हो गये। अतः उन दोनों ने परस्पर विवाह कर डालने का निर्णय किया।
दोनों ने अपने अपने माता-पिता को बात कही। रमेश हिन्दू था और सलमा मुसलमान थी। अत: दोनों के माता-पिता ने इस कार्य का विरोध किया फिर भी उन्होंने उनकी बात न मान कर विवाह कर लिया।
रमेश ने सलमा का नाम बदल कर साधना रखा। इसमें सलमा को कोई आपत्ति नहीं थी । गुलाबी तन-बदन, वाचालता, मोहकता एवं पारस्परिक आकर्षण यह सब देख कर उनका संसार सुखी प्रतीत होता था। विवाह के उपरान्त तुरन्त रमेश अपने माता-पिता से अलग हो गया
था।
छः माह तक तो उन दोनों का जीवन सुखी बना रहा परन्तु तत्पश्चात् साधारण-साधारण बातों में रमेश और साधना में कलह होने लगा।
एक दिन पारस्परिक मन-मुटाव से उन दोनों में संघर्ष हो गया। क्रोधावेश में साधना ने रमेश पर फौजदारी मुकदमा किया। रमेश ने भी मुकदमा लड़ने के लिये अपना वकील किया। मुकदमा चला।
साधना एवं रमेश के वकील आमने-सामने तर्क करने लगे। कैसी करुणा! एक समय के प्रेमी-पक्षी आज एक दूसरे के पंख काट डालने के लिये मैदान में उतर गये थे।
न्यायाधीश के निर्णय सुनाने का दिन आ गया। साधना 'रिवाल्वर' लेकर न्यायालय में न्यायाधीश का निर्णय सुनने के लिये आई। न्यायालय का हॉल मनुष्यों से ठसाठस भर गया था। न्यायाधीशने निर्णय सुना दिया, "वादी को प्रमाणों के अभाव में निर्दोष मानकर मुक्त किया जाता
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