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बुन्देलखण्डका संक्षिप्त इतिहास ।
यता और स्वदेशभक्तिके परिचय देनेका सुअवसर मिला। पृथ्विराजके पराजयके साथ ही इस प्रान्तके गौरवका भी कुछ कालके लिये सूर्यास्त हो गया । कोई बड़ा राजा न रहा और देश छोटी छोटी रियासतों में बँट गया। इनमें प्रायः खंगार वंशवालोंके हाथमें शासन था। इन खंगारोको पृथ्विराजने अपने अधिकारके समयमें प्रान्तीय क्षत्रप (या सूबेदार ) नियत किया था। परन्तु उनके पतनपर इन्होंने अवसर पा कर अपनेको धीरे धीरे स्वतंत्र बना लिया था। इनके हाथमें राज्यका शासन लगभग १५० वर्षतक रहा; तदुपरान्त यहाँ बुन्देलोका प्रभाव बढ़ने लगा, यहाँतक कि सारा प्रान्त इनके करतलगत हुआ और बुन्देलखण्ड नामसे कहलाने लगा।
हमारे चरित्रनायक इसी बुन्देला जातिमें उत्पन्न हुए थे। अतः हम इसका वर्णन विस्तृत रूपसे करना उचित समझते हैं।
भगवान् रामचन्द्रजीके पुत्र कुशसे राठौर (राष्ट्रवर) राजपुत्रोंकी उत्पत्ति हुई । इनकी एक शाखाका नाम गहिरकार था। काशीमें इनका राज्य था और प्रासपासके जिलोंमें इनका बहुत प्रभाव था। इस वंशमें वीरभद्र नामके एक राजा हुए जिनकी दोरानियाँथीं । बड़ीरानीसे चार पुत्र थे और छोटीसे एक, जिनका नाम हेमकर्ण था । यद्यपि नियमानुसार इनका कोई हक न था, फिर भी इनके पिता इनको ही राज्य देना चाहते थे। परन्तु इनकी मृत्युपर भाइयोंने इनको निकाल दिया। ____ काशीसे बहिष्कृत होकर हेमकर्ण विन्ध्याचल पर्वतपर स्थित विन्ध्यवासिनी देवीकी उपासनामें लगे। कुछ कालमें देवी उनसे प्रसन्न हुई। ऐसी लोकोक्ति है कि वे अपना शिर काट कर अर्पण करना चाहते थे और खङ्गाघातसे कुछ बूंद रक्तके गिर भी चुके थे कि देवीने आकर रोक दिया।
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