Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 133
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १२२ महाराज छत्रसाल । - दिये थे उनका कथन पहिले ही हो चुका है । शुभकर्ण के व्यवहारका भी कथन किया जा चुका है। यह विरोध मुसल. मानोंके समयमें कभी भी पूर्णतया शान्त न हुआ । जब मुसलमानोंके पीछे मरहठोंने बुन्देलखण्डमें बढ़ना प्रारम्भ किया तब मी इसने बँदेलोको एक न होने दिया। फल यह हुआ कि बारी बारी कई बँदेला राजाओंको मरहठोंसे नीचा देखना पड़ा। ___ यह आपसका झगड़ा यहींतक समाप्त न हुआ । स्वयं छत्रसालके लड़कोंमें परस्पर पूरा प्रेम न था। यदि वे परस्पर प्रेम करते होते तो केवल बड़े लड़केको गद्दी मिलती और राज्यके टुकड़े होकर उसके बलका सत्यानाश न होता। अपने लड़कोंके आपसके द्वेषको देखकर ही छत्रसालने राज्यके तीन टुकड़े किये जिनमें से एक पेशवाको देना पड़ा कि वे देशमें शान्ति रक्खें। परन्तु मरहठोंके प्रवेशने बुन्देलखण्डमें और झगड़ोंका बीज बोदिया, जैसा कि बुन्देलखण्डके पिछले कालके इतिहाससे विदित होता है। उधर मरहठोंके बल बढ़नेके साथ साथ बुंदेलोका बल घटता ही गया । छत्रसालके लड़कोंके दो राज्यों से टूटकर कई छोटे छोटे राज्य हो गये जिन्होंने उन्नतिकी आशाको और भी दूर फेंक दिया। इन्हीं सब कारणोंने छत्रसालके लगाये हुए वृक्षमें वह फल न लगने दिया जिसकी उससे आशा की जाती थी। समाप्त। For Private And Personal

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