Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चम्पत राय। १७ - - अच्छा नहीं था। फिर भी इससे एक ही वंशकी जो कुछ हानि होती थी वह होती; आपत्ति यह हुई कि इस झगड़ेका प्रभाव सारे बुन्देलखण्डपर पड़ा; देश दो विरोधी दलोंमें विभक्त हो गया जिनका उदेश्य एक दूसरे का विरोध करना था, चाहे इसमें अपनी भी हानि हो। इसका फल यह हुआ कि दोनों दुर्बल हो गये और मुगलोको मनोवाञ्छित अवसर हाथ लगा। सहायता करना तो दूर रहा, मोरछावाले चम्मतरायके पीछे पड़ गये और इनको एक साथ ही दो प्रबल शत्रुओका सामना करना पड़ा। यदि ऐसा न होता तो बुन्देल. खण्डको बहुत ही शीघ्र स्वातंत्र्य मिल जाता और कदाचित् भारतवर्षके इतिहासका कर ही परिवर्तित हो जाता। चम्पत राव और उनके पुत्र महात्मा छत्रसालको भयानक दुःख कदापि न भोगने पड़ते और मुगलवंशकी कीर्तिका सूर्य मध्याह्नमें ही अस्त हो जाता । ___ पर भावी प्रबल है । देशको कुछ और देखना था और मुगलोंका पुण्य अभी क्षीण नहीं हुआ था । इसीलिये बुन्देलोंमें घरमें हा फूट उत्पन्न हो गयी और जो शक्ति राष्ट्रके शत्रुओंका विध्वंस करनेके योग्य थी उसका दुरुपयोग एक दूसरेके संहारमें होने लगा। जिस प्रकार कि ऋषिशापके वशीभूत होकर यादवोंने अपना सर्वनाश किया था, ठीक उसी भाँति इस समय बुंदेले एक दूसरे की जड़ खोदने में तत्पर हो रहे थे। अस्तु, तो महाराजा पहाड़सिंहने अपने मुसलमान मंत्री. की बातमें आकर और तुच्छ ईर्षाभावके वशीभूत होकर चम्पत रावका प्रबल विरोध किया और जिस प्रकार मुग़ल सना इनके पीछे पड़ी हुई थी उसी प्रकार कुछ सिपाही इनको पकड़ने के लिये नियत किये। For Private And Personal

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