Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth ora हाराज Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अकबर, जहाँगीरका समय गया जबकि हिन्दुओका समादर होता था; औरंगजेबके शासनकालमें इस जातिको सिवाय अपमान, निरादर, सार्वभौम पीड़ा और अत्याचारके किसी और बातकी अपेक्षा न करनी चाहिये । निदान अब इन दोनों भाइयोंका चित्त मुगल सेवासे फिर गया। वह मोह, जिसने कुछ दिनोंके लिये इनका चित्त देशसेवासे विमुख कर दिया था, दूर हुआ और पुराने विचार फिर जागृत हुए । वीर छत्रसालने अपनी प्रतिज्ञाकी फिर आवृत्ति की और अंगदरायने भी इनसे सहमत होकर उसी प्रतिज्ञाको निवाहनेका प्रण किया। ___ इन लोगोंने यह विचार किया कि इस कामको प्रारम्भ करनेके पहिले किसी अनुभवी पुरुषसे परामर्श लेना चाहिये। उस समय महाराष्ट्रसूर्य महाराज शिवाजीकी कीर्ति सारे भारतमें फैल रही थी। औरंगजेबके प्रचण्ड बलका विरोध करके उन्होंने विजय प्राप्त की थी। अतः उनके समान कोई दूसरा अनुभवी पुरुष देख न पड़ता था। यही सोच कर दोनों भाई शिवाजीसे परामर्श और यथासम्भव सहायता लेनेकी इच्छासे उनकी राजधानी रायगढ़ की ओर चले। ६. शिवाजीसे भेंट। उस समय शिवाजीका यश सारे भारतमें फैल रहा था। औरंगजेब ऐसे प्रतापी बादशाहका सामना करना हँसी खेल न था; परन्तु शिवाजीने इस कामको किया था और इसमें सफलता पायी थी। उधर तो बीजापुरादि पठान राजाओंका विरोध और दूसरी ओर मुगलोका प्रबल For Private And Personal

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